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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२२५

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अपना पक्ष २२३ मरण समयकी बात आ जानेके कारण अमली या व्यावहारिक चीजकी ही आवश्यकता हो जाती है । मरणकालमे कोरे दार्शनिकवादोसे सिवाय हानिके कुछ मिलने-जुलनेवाला तो है नहीं। ऐसे लोगोने दृश्य-बाहरी--ससारको पहले दो भागोमे बाँटा। पहले भागमे रखा अपने शरीरको। अपने शरीरसे अर्थ है चिन्तन करने- वालोके शरीरसे । फिर भी इस प्रकार सभी जीवधारियोके शरीर, या कमसे कम मनुष्योके गरीर इस विभागमे आ जाते है। क्योकि सोचने- विचारनेका मौका तो सभीके लिये है। हालाँकि एक आदमी के लिये दूसरोके भी शरीर वैसे ही है जैसे अन्न, वस्त्र, पृथिवी, वृक्ष आदि पदार्थ । शरीरके अतिरिक्त शेष पदार्थोंको भूत यो भौतिक माना गया। पीछे इन भौतिक पदार्थोके दो विभाग कर दिये गये। एक तो ऐसोका जिनमें कोई खास चमत्कार नहीं पाया जाता। इनमे पागये वृक्ष, पर्वत, नदी, समुद्र, पृथिवी आदि। दूसरा हुआ उन पदार्थोंका जिनमे चमत्कार पाया गया। इनमें आये चन्द्र, सूर्य, विद्युत् प्रादि। इस प्रकार शरीर, पृथिवी आदि, सूर्य प्रभृति, इन तीन विभागोमे दृश्य ससारको बाँट दिया गया । शुरूमे तो शरीरके सिवाय आत्मा, स्व, या निज नामकी और चीजका पता था नही। इसलिये शरीरको ही आत्मा भी कहते थे। पृथिवी आदि स्थूल' पदार्थोंको, जिनमे चमत्कार या दिव्य-शक्ति नहीं देखी गई, भूत कहने लगे। भूतका अर्थ है ठोस। इन्हे छूके इनका ठोसपन जान सकते थे। मगर जो आदमीकी पहुँचके बाहरके सूर्य, चन्द्र, विद्युत् प्रादि पदार्थ थे उन्हें देवता, देव या दिव्य कहते थे। इनके ठोसपनका पता तो लगा सकते न थे। ये चीजे आकाशमे ही नजर आती है। इसलिये आकाश को भी दिव्, या कहते थे । वह ठोस भी तो नही है । जिस स्वर्ग नामक स्थानमे इन दिव्य पदार्थोंका निवास माना गया वह भी दिव् या धु कहा जाने लगा।