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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३२४

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३२८ गीता-हृदय ज्यादा गये गुजरोसे सन्तानें होगी जो वर्णसकरसे भी बुरी चीज होगी। यही कारण है कि अगले श्लोकमें इस वर्णसकर का नतीजा बताया है कि कुलके नाशक और समस्त कुल-दोनो ही-नरकमे जाते है। इसका सीधा मतलब यही है कि सभीका पतन हो जाता है। नरक तो पतन, नीचे गिरने अवनति या फजीती और कष्टकी दशाको ही कहते है और यही बात वर्णसकरके करने होती है। जब सारा समाज ही पतित हो जायगा, नीचे जा गिरेगा तो अकेला आदमी, जिसने कुल क्षयके द्वारा यह दशा ला दी, कहाँ जायगा, कैसे रहेगा ? उसे भी तो आखिर पतितो एव गिरे हुओके साथ ही रहना और व्यवहार करना होगा। समाजमे अकेला तो कोई कुछ कर नही सकता। यह तो लम्बी शृखला है जिसकी एक एक लडी हरेक व्यक्ति है। नतीजा यह होगा कि उन्नतिके सभी मार्गोके अवरुद्ध होनेसे वह भी नीचे जा गिरेगा । पुरानी कहानी है कि किसी राजाका बच्चा दिनरात किरातोमे रहनेसे पूरा किरात ही बन गया था । यही वजह है कि आगे जातिधर्म और कुलधर्मोका नाश लिखा है। वह रहने कैसे पायेगे। उनकी तो बुनियाद ही जाती रही। एक तो उनके जाननेवाले ही नहीं रहे । और अगर कोई किसी प्रकार वचे भी तो जब समाजका समाज पथभ्रष्ट हो गया, तो वह भी उसी गढेमे लाचार गिरेगे ही । ऐसी हालतमे कला, कौशल, कारीगरी, हुनर, हिकमतका पता कहाँ होगा ? इन चीजोकी विशेषज्ञता कैसे रह सकेगी और कहाँ जो पुरानी पोथियोमें पिंडदान और तर्पणकी बात कही गई है और जिसका उल्लेख आगे गीतामे भी इसी सिलसिलेमे आया है कि वह भी चीजें चौपट हो जायेंगी वह भी ठीक ही है । ये चीजं तो व्यष्टिका समप्टिके साथ-व्यक्तिका समाजके साथ-होनेवाली एकताकी सूचक है। इसीलिये सांप, बिच्छू, अनाथ, अनजानमें मरे प्रादिका भी तर्पण-श्राद्ध करते है। मत्रोमें ऐसा ही लिखा है। इस तरह भूत, भविष्य, वर्तमान ?