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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३७३

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३८० गीता-हृदय 1 है कि मुंह कैसे दिखाओगे वह कितना अनूठा है । पन्द्रहवेंमें, मरणके समय जीव सभी सस्कारोको लेके साथ ही जाता है, इसका कितना सुन्दर वर्णन वायुके द्वारा फूलोकी गन्ध ले जानेकी बातसे किया गया है गीतोपदेश ऐतिहासिक हमें एक ही बात और कहके उपसहार करना है । गीताके प्राचीन टीकाकारोमें किसी-किसीने गीताके वर्णनको केवल पालकारिक मानके अर्जुन, कृष्ण आदिको ऐतिहासिक पुरुषोकी जगह कुछ और ही माना है। उपदेश और उपदेश्य-गुरु तथा शिष्य-आदिको ही कृष्ण, अर्जुन आदिका रूप उनने दिया है और इस तरह अपनी कल्पनाका महल उसी नीवपर खडा किया है। मगर हमे उससे यह पता नहीं चल सका था कि ऐसा करके वे लोग सचमुच महाभारत, गीता, उस युद्ध और कौरव-पाडव आदिको ऐतिहासिक पदार्थ नहीं मानते। क्योकि इस वातकी झलक उनकी टीकाप्रोमें पाई नही जाती। परन्तु कुछ आधुनिक लोगोने यह कहके गीताको ही ऐतिहासिकतासे हटाना चाहा है कि प्राय बीस लाख फौजो-क्योकि १८ अक्षौहिणियाँ वहाँ मानी जाती है और एक अक्षौहिणीमे प्राय एक लाख आदमी अलावे घोडे, हाथी, तोप आदिके होते थे-के बीचमे, जव वह प्रहार करने हीको थी, यह गीतोपदेश असभव था। इसके लिये समय कहाँ था? इसलिये कविने पीछेसे कृष्ण और अर्जुनके नामपर उसे रचके महाभारतमे घुसेड दिया है। मगर यदि वह जरा भी सोचे तो पता चले कि इस गीतोपदेशके लिये दो-चार घटेकी जरूरत न थी। सात सौ श्लोकोका पाठ तेजीसे एक घटेमें पूरा हो जाता है । किन्तु वहाँ श्लोक बोले गये, सो भी ठहर-ठहरके, यह बात तो है नहीं। कृष्णने अर्जुनको प्रचलित भाषामें उपदेश किया । . ,