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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३८६

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प्रवेशिका ३६३ और यह नौबत आनेतक दूसरी बाते क्या-क्या हो गईं ? शुरूमे बात यो हुई कि लडाईकी सारी तैयारी देखके और अवश्यम्भावी सहारका खयाल करके व्यास धृतराष्ट्रके पास आये। यह तो मालूम ही है कि घृतराष्ट्र उनके पुत्र थे। इसलिये भी और सान्त्वना देनेके साथ ही आगाह कर देनेके लिये भी उनका आना जरूरी था। वही तो अब पथप्रदर्शक वच गये थे। वाकी लोग तो लडाईके मैदानमे ही डटे थे। उनने समझा कि शायद अन्धे धृतराष्ट्रको यह देखनेकी इच्छा हो कि अन्तिम समय तो भला पुत्रो और सम्बन्धियोको देख लें। भीष्मपर्वके पहले अध्यायमें लडाईकी तैयारी देखने और सहारका लक्षण जाननेकी बात कहके दूसरेमें धृतराष्ट्रके साथ व्यासका सम्वाद लिखा गया है। वहाँ व्यासके यह कहनेपर कि चाहो तो आँखें ठीक कर दूं और सब कुछ देख लो, धृतराष्ट्रने यही उत्तर दिया कि जिन्दगी भर तो कुछ देख न सका । तो अब आँख लेके भला यह वशसहार देखू ? इसकी जरूरत नही है । हाँ, कृपया ऐसा प्रबन्ध कर दें कि पूरा वृत्तान्त अक्षरश जान सकूँ। इसपर व्यासने धृतराष्ट्रके मत्री सजयको बताके कहा कि अच्छा, तो इस सजयकी ही अॉखोमे ऐसी शक्ति दिये देता हूँ कि यह रत्ती-रत्ती समाचार तुम्हें सुनायेगा। इसे हरेक बातकी जानकारी बैठे-बैठे ही हो जाया करेगी। दिनमे या रातमें, प्रत्यक्ष परोक्ष जो कुछ भी होगा, यहाँतक कि लडनेवाले लोग मनमें भी जिस वातका खयाल करेगे, सभीकी पूरी जानकारी इसे हो जाया करेगी। लेकिन इसीके साथ व्यासने एक बार और भी धृतराष्ट्रको समझानेकी कोशिश की कि वह दुर्योधनको समझाके अव भी रोक दे, अभी कुछ विगडा नहीं है । व्यासको तो पता था ही कि धृतराष्ट्र और दुर्योधनकी एक ही राय है। मगर धृतराष्ट्र पर तो इसका असर होने जानेका था नहीं। यही बाते दो और तीन अध्यायोमें आई हैं। जव उनने देखा कि धृतराष्ट्रके मनमे उनकी बात घुस नही रही है,