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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/७१७

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•७३६ गीता-हृदय घोडोमे (अमृतके साथ उत्पन्न) उच्च श्रवा नामक घोडा मुझे समझो, बडे हाथियोमे ऐरावत-इन्द्रका हाथी-और मनुष्योमें राजा (भी मुझे हो समझो) ।२७। श्रायुधानामहं वन धेनूनामस्मि कामघुक् । प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥२८॥ हथियारोमै वज्र (तथा) दुही जानेवालियोमे कामधेनु हूँ । सन्तानो- त्पादक काम मै हूँ (और) सर्पो-रेगनेवालो-मे वासुकि नामक सर्प मै हूँ ॥२८॥ अनन्तश्चास्मि नागाना वरुणो यादसामहम् । पितृणामर्यमा चास्मि यम सयमतामहम् ॥२६॥ नागो यानी दिव्य-विलक्षण-~~-सर्पोमे शेषनाग हूँ (और) जल- जन्तुओमे वरुण । पितरोमे अर्यमा नामक पितर और (लोगोको सुधारनेके लिये) दड करनेवालोमे यम हूँ।२६। प्रह्लादश्चास्मि दैत्याना काल. फलयतामहम् । मृगाणा च मृगेन्द्रोह वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥३०॥ दैत्योमे प्रह्लाद और गिनने या हिसाब लगानेवालोमें काल-समय- मैं हूँ। पशुप्रोमे सिह और पक्षियोमें गरुड हूँ ।३०। पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् । झषाणा मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥३१॥ पवित्र करने, सुखाने या चलनेवालोमें वायु और शस्त्रधारियोमें राम हूँ। जलजन्तुप्रोमे मगर और सोतोमें भागीरथी गगा मै हूँ ॥३१॥ सर्गाणामादिरन्तश्च मध्य चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्याना बाद प्रवदतामहम् ॥३२॥