सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/८४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८६४ गीता-हृदय 1 कर्मोका, जिनकी गणना गोता करती है, तीन श्रद्धाोके वीच बंटवारा हो गया है। वहाँ भी "गुणत्रयविभागयोग" ऐसा ही लिखा गया है। हमने जो कुछ अब तक कहा है वह भी यही है । बेशक, इस अध्यायमे कर्त्तव्या- कर्तव्यकी एक निराली, और गीताकी अपनी, कसौटी कही गई है जिसपर काफी प्रकाश पहले ही डाला जा चुका है। यहाँ उससे ज्यादा लिखनेका मौका है नही । लेकिन अभी इस सम्बन्धमे बहुत कुछ कहना जरूरी है, जो अागेके लिये ही छोड दिया जाना ठीक है। इति श्री० श्रद्धात्रयविभागयोगो नाम सप्तदशोऽध्यायः ॥१७॥ श्रीम० जो श्रीकृष्ण और अर्जुनका सम्वाद है उसका गुणत्रय- विभागयोग नामक सत्रहवां अध्याय एटी है ।