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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/८६०

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८९० गीता-हृदय वह आया भी है इसीलिये। आगेके २२ श्लोकोका साराश यही है। ज्ञान कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत । प्रोच्यते गुणसख्याने ययावच्छृणु तान्यपि ॥१९॥ (तीनो) गुणोके भिन्न-भिन्न होनेसे ज्ञान, कर्म और कर्ता भी सारय- शास्त्रमें तीन प्रकारके कहे गये है। उन्हें भी ठीक-ठीक सुन लो ।१९। सर्वभूतेषु येनैक भावमव्ययमीक्षते । अविभक्त विभक्तेषु तज्ज्ञान विद्धि सात्त्विकम् ॥२०॥ पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान् पृथग्विधान् । वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञान विद्धि राजसम् ॥२१॥ यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहतुकम् । अतत्त्वार्थवदल्प च तत्तामसमुदाहृतम् ॥२२॥ जिस ज्ञानके फलस्वरूप सभी जुदे-जुदे पदार्थोमे सर्वत्र एकरस, व्याप्त और अविनाशी वस्तु ही देखते है वही ज्ञान सात्त्विक समझो। सभी पदार्योमे भिन्न-भिन्न अनेक वस्तुओकी जो जुदी-जुदी जानकारी है वही ज्ञान राजस जानो। जो ज्ञान कुछ भौतिक पदार्थोतक ही सीमित, उन्हीको सब कुछ माननेवाला, बेबुनियाद, मिथ्या और तुच्छ है वहीं तामस कहा जाता है ।२०।२१।२२॥ नियत सगरहितमरागद्वेषतः कृतम् । अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते ॥२॥ यत्तु कामेप्सुना कर्म साहकारेण वा पुनः । क्रियते बहुलायास तद्राजसमुदाहृतम् ॥२४॥ अनुबन्धं क्षय हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम् । मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ॥२५॥