सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११६
गुप्त धन
 


यह निर्दय उत्तर पाकर उसने करुण स्वर मे पूछा--तो फिर क्या तदबीर है?

मुझे उस पर रहम तो आ रहा था लेकिन कायदों की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। मुझे नतीजे का जरा भी डर न था। कोर्टमार्शल या तनज्जुली या और कोई सज़ा मेरे ध्यान में न थी। मेरा अन्तःकरण भी साफ था। लेकिन कायदे को कैसे तोडूँ। इसी हैस-बैस में खड़ा था कि लुईसा ने एक कदम बढ़कर मेरा हाथ पकड़ लिया और निहायत पुरदर्द बेचैनी के लहजे में बोली--तो फिर मैं क्या करूँ?

ऐसा मालूम हो रहा था कि जैसे उसका दिल पिघला जा रहा हो। मैं महसूस कर रहा था कि उसका हाथ काँप रहा है। एक बार जी में आया जाने दूँ। प्रेमी के सदेश या अपने बचन की रक्षा के सिवा और कौन-सी शक्ति इस हालत में इसे घर से निकलने पर मजबूर करती? फिर मैं क्यों किसी की मुहब्बत की राह का काँटा बनूँ। लेकिन कायदे ने फिर जबान पकड़ ली। मैने अपना हाथ छुडाने की कोशिश न करके मुँह फेरकर कहा--और कोई तदबीर नहीं है।

मेरा जवाब सुनकर उसकी पकड ढीली पड़ गयी कि जैसे शरीर में जान न हो पर उसने अपना हाथ हटाया नहीं, मेरे हाथ को पकड़े हुए गिड़गिडाकर बोली--सन्तरी, मुझ पर रहम करो। खुदा के लिए मुझ पर रहम करो। मेरी इज़्जत खाक में मत मिलाओ। मैं बड़ी बदनसीब हूँ।

मेरे हाथ पर ऑसुओं के कई गरम कतरे टपक पड़े। मूसलाधार बारिश का मुझ पर ज़र्रा भर भी असर न हुआ था लेकिन इन चन्द बूँदो ने मुझे सर से पाँव तक हिला दिया।

मैं बड़े पसोपेश मे पड़ गया। एक तरफ़ कायदे और फ़र्ज की आहनी दीवार थी, दूसरी तरफ़ एक सुकुमार युवती का विनती भरा आग्रह। मै जानता था अगर उसे सार्जेण्ट के सिपुर्द कर दूँगा तो सबेरा होते ही सारे बटालियन में खबर फैल जायगी, कोर्टमार्शल होगा, कमाण्डिंग अफसर की लड़की पर भी फ़ौज का लौह कानून कोई रियायत न कर सकेगा। उसके बेरहम हाथ उस पर भी बेदर्दी से उठेगे। खासकर लड़ाई के जमाने में।

और अगर इसे छोड़ दूं तो इतनी ही बेदर्दी से कानून मेरे साथ पेश आयेगा। जिन्दगी खाक में मिल जायगी। कौन जाने कल जिन्दा भी रहूँ या नहीं। कम से कम तनञ्जुली तो होगी ही। भेद छिपा भी रहे तो क्या मेरी अन्तरात्मा मुझे सदा न धिक्कारेगी? क्या मैं फिर किसी के सामने इसी दिलेर ढग से ताक सकूँगा? क्या मेरे दिल में हमेशा एक चोर-सा न समाया रहेगा?