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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/११५

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तिरसूल
११९
 

बिदा हो गया, प्रजातन्त्र को एक शताब्दी में जितनी उन्नति न हुई थी, उतनी इन थोड़े से सालों में हो गयी। मेरे जीवन में भी कितने ही परिवर्तन हुए! एक टॉग युद्ध के देवता की भेंट हो गयी, मामूली सिपाही से लेफ्टिनेण्ट हो गया।

एक दिन फिर ऐसी ही चमक और गरज की रात थी। मैं क्वार्टर में बैठा हुआ कप्तान नाक्स और लेफ्टिनेण्ट डाक्टर चन्द्रसिंह से इसी घटना की चर्चा कर रहा था जो दस-बारह साल पहले हुई थी, सिर्फ लुईसा का नाम छिपा रखा था। कप्तान नाक्स को इस चर्चा में असाधारण आनन्द आ रहा था। वह बार-बार एक-एक बात पूछता और घटना का क्रम मिलाने के लिए दुबारा पूछता था। जब मैंने आखिर में कहा कि उस दिन भी ऐसी ही अँधेरी रात थी, ऐसी मूसलाधार बारिश हो रही थी और यही वक़्त था तो नाक्स अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और बहुत उद्विग्न होकर बोला--क्या उस औरत का नाम लुईसा तो नहीं था?

मैंने आश्चर्य से कहा, 'आपको उसका नाम कैसे मालूम हुआ? मैंने तो नहीं बतलाया, पर नाक्स की आँखों में आँसू भर आये। सिसकियाँ लेकर बोले--यह सब आपको अभी मालूम हो जायगा। पहले यह बतलाइए कि आपका नाम श्रीनाथ सिंह है या चौधरी?

मैंने कहा--मेरा पूरा नाम श्रीनाथ सिंह चौधरी है। अब लोग मुझे सिर्फ चौधरी कहते हैं। लेकिन उस वक्त चौधरी के नाम से मुझे कोई न जानता था। लोग श्रीनाथ कहते थे।

कप्तान नाक्स अपनी कुर्सी खीचकर मेरे पास आ गये और बोले-- आप मेरे पुराने दोस्त निकले। मुझे अब तक नाम के बदल जाने से धोखा हो रहा था, वर्ना आपका नाम तो मुझे खूब याद है। हाँ, ऐसा याद है कि शायद मरते दम तक भी न भूलूँ क्योंकि यह उसकी आखिरी वसीयत है।

यह कहते-कहते नाक्स खामोश हो गये और ऑखें बन्द करके सर मेज़ पर रख लिया। मेरा आश्चर्य हर क्षण बढ़ता जा रहा था और लेफ़्टिनेण्ट डा० चन्द्रसिंह भी सवाल-भरी नजरों से एक बार मेरी तरफ़ और दूसरी बार कप्तान नाक्स के चेहरे की तरफ़ देख रहे थे।

दो मिनट तक खामोश रहने के बाद कप्तान नाक्स ने सर उठाया और एक लम्बी साँस लेकर बोले--क्यों लेफ़्टिनेण्ट चौधरी, तुम्हें याद है एक बार एक अंग्रेज़ सिपाही ने तुम्हें बुरी गाली दी थी?