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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१३१

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ईश्वर, कहाँ जायें, इस मुसीबत में तुम्हारा ही भरोसा है। क्या जानता था कि यह आफत आनेवाली है, नहीं आता ही क्यों? बस चुप्पी ही साध लो। अगर हिलाये-विलाये तो भी साँस मत लेना।'

'मुझसे तो चुप्पी साधकर पडा न रहा जायगा।'

'जेवर उतारकर रख क्यो नहीं देती, शैतान ज़ेवर ही तो लेगे।'

'जेवर तो न उतारूँगी चाहे कुछ ही क्यों न हो जाय।'

'क्यों जान देने पर तुली हुई हो?'

'खुशी से तो जेवर न उतारूँगी, ज़बरर्दस्ती की और बात है।'

'खामोश, सुनो सब क्या बाते कर रहे हैं।'

बाहर से आवाज आयी--किवाड खोल दो नहीं तो हम किवाड़ तोडकर अन्दर आ जायेंगे।

गजेन्द्र ने श्यामदुलारी की मिन्नत की--मेरी बात मानो श्यामा, जेवर उतारकर रख दो, मैं वादा करता हूँ बहुत जल्द नये जेवर बनवा दूँगा।

बाहर से आवाज आयी--क्यों, शामते आयी है! बस एक मिनट की मुहलत और देते हैं, अगर किवाड़ न खोले तो खैरियत नहीं।

गजेन्द्र ने श्यामदुलारी से पूछा--खोल दूँ?

'हाँ बुला लो, तुम्हारे भाई-बन्द है न? वह दरवाज़े को बाहर से ढकेलते है, तुम अन्दर से बाहर को ठेलो।'

'और जो दरवाजा मेरे ऊपर गिर पड़े? पाँच पाॅच जवान है।'

'वह कोने मे लाठी रखी है, लेकर खड़े हो जाओ।'

'तुम' पागल हो गयी हो।'

'चुन्नी दादा होते तो पाॅचों को गिराते।'

'मै लट्ठबाज नहीं हूँ।'

'तो आओ मुँह ढॉपकर लेट जाओ, मैं उन सबो से समझ लूँगी।'

'तुम्हें तो औरत समझकर छोड़ देंगे, माथे मेरे जायगी।'

'मैं तो चिल्लाती हूँ।'

'तुम मेरी जान लेकर छोडोगी!'

'मुझसे तो अब सब्र नहीं होता, मैं किवाड़ खोले देती हूँ।'

उसने दरवाजा खोल दिया। पाँचों चोर कमरे में भड़भडाकर घुस आये।