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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२६०

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गुप्त धन
 


उतने ही कंगाल। मगर आज शराब के दौर मे ज्योंही उनकी आँखो में सुखी आयी हेलेन ने प्रेम से पगे हुए स्वर मे कहा—भई, तुम्हारी ये आँखे तो जिगर के पार हुई जाती है। और सादिक साहब उस वक्त उसके पैरो पर गिरते-गिरते रुक गये। लज्जा बाधक हुई। उनकी आँखों की ऐसी तारीफ शायद ही किसी ने की हो। मुझे कभी अपने रूप-रग, चाल-ढाल की तारीफ सुनने की इच्छा नहीं हुई। मैं जो कुछ हूँ, जानता हूँ। मुझे अपने बारे मे यह घोखा कभी नहीं हो सका कि मैं खूबसूरत हूँ। यह भी जानता हूँ कि हेलेन का यह सब सत्कार कोई मतलब नहीं रखता। लेकिन अब मुझे भी यह बेचैनी होने लगी कि देखो मुझ पर क्या इनायत होती है। कोई बात न थी, मगर मैं बेचैन रहा। जब मैं शाम को यूनिवर्सिटी ग्राउण्ड से खेल की प्रैक्टिस करके आ रहा था तो मेरे ये बिखरे हुए बाल कुछ और ज्यादा विखर गये थे। उसने आसक्त नेत्रों से देखकर फौरन कहा—तुम्हारी इन बिखरी हुई जल्फो पर निसार होने को जी चाहता है! मै निहाल हो गया, दिल में क्या-क्या तूफान उठे कह नहीं सकता।

मगर खुदा जाने क्यों हम तीनों मे से एक भी उसकी किसी अदा या अंदाज़ या रूप की प्रशसा शब्दों में नहीं कर पाता। हमे लगता है कि हमें ठीक शब्द नहीं मिलते। जो कुछ हम कह सकते है उसमे कही ज्यादा प्रभावित है। कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं होती।


१ फरवरी—हम दिल्ली आ गये। इस बीच में मुरादाबाद, नैनीताल, देहरादून वगैरह जगहों के दौरे किये मगर कही कोई खिलाड़ी न मिला! अलीगढ़ और दिल्ली से कई अच्छे खिलाड़ियों के मिलने की उम्मीद है इसलिए हम लोग वहाँ कई दिन रहेगे। एलेविन पूरी होते ही हम लोग बम्बई आ जायेगे और वहां एक महीने प्रैक्टिस करेंगे। मार्च में आस्ट्रेलियन टीम यहाँ से रवाना होगी। तब तक वह हिन्दुस्तान मे सारे पहले से निश्चित मैच खेल चुकी होगी। हम उससे आखिरी मैच खेलेगे और खुदा ने चाहा तो हिन्दुस्तान की सारी शिकस्तो का बदला चुका देंगे। सादिक और बृजेन्द्र भी हमारे साथ घूमते रहे। मैं तो न चाहता था कि ये लोग आये मगर हेलेन को शायद प्रेमियों के जमघट में मजा आता है। हम सब के सब एक ही होटल में हैं और सब हेलेन के मेहमान है। स्टेशन पर पहुंचे लो सैकड़ों आदमी हमारा स्वागत करने के लिए मौजूद थे। कई औरतें भी थी