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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२६९

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कोई दुख न हो तो बकरी खरीद लो
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आलू,किसी में गोभी। एक काछी से तय कर लिया कि रोजाना बकरी के लिए कुछ हरियाली दे जाया करे। मगर इतनी कोशिश करने पर भी दूध की मात्रा में कुछ खास बढ़ती नहीं हुई। ढाई सेर की जगह मुश्किल से सेर भर दूध निकलता था लेकिन यह तस्कीन थी कि दूध खालिस है, यही क्या कम है।

मैं यह कभी नहीं मान सकता कि खिदमतगारी के मुकाबले में बकरी चराना ज्यादा जलील काम है। हमारे देवताओं और नबियो का बहुत सम्मानित वर्ग गल्ले चराया करता था। कृष्ण जी गाये चराते थे। कौन कह सकता है कि उस गल्ले में बकरियाँ न रही होंगी। हजरत ईसा और हजरत मुहम्मद दोनों ही भेड़े चराते थे। लेकिन आदमी रूढ़ियों का दास है। जो कुछ बुजुर्गों ने नहीं किया उसे वह कैसे करे। नये रास्ते पर चलने के लिए जिस संकल्प और दृढ़ आस्था की जरूरत है वह हर एक मे तो होती नहीं। धोबी आपके गन्दे कपड़े धो लेगा लेकिन आपके दरवाजे पर झाड़ लगाने में अपनी हतक समझता है। जरायमपेशा कौमों के लोग बाजार से कोई चीज कीमत देकर खरीदना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। मेरे खिदमतगार को बकरी लेकर बाग़ में जाना बुरा मालूम होता था। घर से तो ले जाय लेकिन बाग में उसे छोड़कर खुद किसी पेड़ के नीचे सो जाता। बकरी पत्तियाँ चर लेती थी। मगर एक दिन उसके जी में आया कि जरा बाग से निकलकर खेतों की सैर करे। यों वह बहुत ही सभ्य और सुसंस्कृत बकरी थी, उसके चेहरे से गम्भीरता झलकती थी। लेकिन बाग और खेत में उसे यकसॉ आजादी नहीं है, इसे वह शायद न समझ सकी। एक रोज़ किसी खेत मे घुस गयी और गोभी की कई क्यारियों साफ कर गयी। काछी ने देखा तो उसके कान पकड़ लिये और मेरे पास लाकर बोला -बाबूजी, इस तरह आपकी बकरी हमारे खेत चरेगी तो हम तो तबाह हो जायेंगे। आपको बकरी रखने का शौक है तो इसे बाँधकर रखिये। आज तो हमने आपका लिहाज किया लेकिन फिर हमारे खेत मे गयी तो हम या तो उसकी टांग तोड़ देगे या कानीहौद भेज देंगे।

अभी वह अपना भाषण खतम न कर पाया था कि उसकी बीवी आ पहुँची और उसने इसी विचार को और भी जोरदार शब्दो मे अदा किया- हाँ हाँ करती ही रही मगर रॉड खेत में घुस गयी और सारा खेत चौपट कर दिया, इसके पेट मे भवानी बैठे! यहाँ कोई तुम्हारा दबैल नहीं है। हाकिम होगे अपने घर के होगे। बकरी रखना है तो बाँधकर रखो नहीं गला ऐठ दूंगी!

मैं भीगी बिल्ली बना हुआ खड़ा था। जितनी फटकार आज सहनी पड़ी