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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/३७

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होली की छुट्टी
४१
 

उसने लालटेन उठाकर मेरा चेहरा देखा और बोला—मेरा नाम जैक्सन है। बिल जैक्सन! जरूर आना। स्टेशन के पास जिससे मेरा नाम पूछोगे, मेरा पता बतला देगा।

यह कहकर वह पीछे की तरफ मुडा, मगर यकायक लौट पड़ा और बोला—मगर तुम्हे यहाँ सारी रात बैठना पड़ेगा और तुम्हारी अम्माँ घबरा रही होंगी। तुम मेरे कधे पर बैठ जाओ तो मैं तुम्हे उस पार पहुंचा दूं। आजकल पानी बहुत कम है, मैं तो अक्सर तैर आता हूँ।

मैने एहसान से दबकर कहा—आपने यही क्या कम इनायत की है कि मुझे यहाँ तक पहुँचा दिया, वर्ना शायद घर पहुँचना नसीब न होता। मैं यहाँ बैठा रहूंगा और सुबह को किश्ती से पार उतर जाऊँगा।

'वाह, और तुम्हारी अम्माँ रोती होगी कि मेरे लाड़ले पर जाने क्या गुजरी?'

यह कहकर मिस्टर जैक्सन ने मुझे झट उठाकर कधे पर बिठा लिया और इस तरह बेधड़क पानी में घुसे कि जैसे सूखी जमीन है। मैं दोनों हाथो से उनकी गर्दन पकडे हूँ और कुछ हँस भी रहा हूँ; फिर भी सीना घडक रहा है और रगों मे सनसनी-सी मालूम हो रही है। मगर जैक्सन साहब इत्मीनान से चले जा रहे है। पाती घुटने तक आया, फिर कमर तक पहुँचा, ओफ्फोह सीने तक पहुंच गया। अब' साहब को एक-एक कदम मुश्किल हो रहा है। मेरी जान निकल रही है। लहरे उनके गले लिपट रही है। मेरे पॉव भी चूमने लगी। मेरा जी चाहता है उनसे कहूँ भगवान के लिए वापस चलिए, मगर जबान नही खुलती। चेतना ने जैसे इस संकट का सामना करने के लिए सब दरवाजे बन्द कर लिये। डरता हूँ कही जैक्सन साहब फिसले तो अपना काम तमाम है। यह तो तैराक है, निकल जायेंगे, मैं लहरों की खुराक बन जाऊँगा। अफ़सोस आता है अपनी बेवकूफी पर कि तैरना क्यो न सीख लिया? यकायक जैक्सन ने मुझे दोनों हाथों से कधे के ऊपर उठा लिया। हम बीच धार में पहुँच गये थे। बहाव मे इतनी तेजी थी कि एक-एक कदम आगे रखने मे एक-एक मिनट लग जाता था। दिन को इस नदी मे कितनी ही बार आ चुका था लेकिन रात को और इस मझधार मे वह बहती हुई मौत मालूम होती थी। दस-बारह कदम तक मैं जैक्सन के दोनों हाथों पर टॅगा रहा। फिर पानी उतरने लगा। मै देख न सका, मगर शायद पानी जैक्सन के सर के ऊपर तक आ गया था। इसीलिए उन्होने मुझे हाथो पर बिठा लिया था।