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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१०

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( 10 ) राष्ट्रभाषा हिन्दीके सम्बन्धमें गुप्तजीका अभिमत है : "हमारे लिये इस समय वही हिन्दी अधिक उपकारी है, जिसे हिन्दी बोलने वाले तो समझ ही सकें, उनके सिवा उन प्रान्तोंके लोग भी उसे कुछ न कुछ समझ सकें, जिनमें वह नहीं बोली जाती। हिन्दीमें संस्कृतके सरल सरल शब्द अवश्य अधिक होने चाहियें, इससे हमारी मूल भाषा संस्कृतका उपकार होगा और गुजराती, बंगाली, मराठे आदि भी हमारी भाषाको समझने के योग्य होंगे। किसी देशकी भाषा उस समय तक काम की नहीं होती, जबतक उसमें उस देशकी मूल भाषाके शब्द बहुतायतके साथ शामिल नहीं होते।" संवत् १६६४ तदनुसार सन् १९०७ ई० ता० १८ सितम्बर भाद्र शुक्ला ११ को दिल्ली में गुप्तजीका स्वर्गवास हुआ। माघ शुक्ला श्रीपञ्चमी, २००६ विक्रमाव्द ) जसरापुर-खेतड़ी, राजस्थान । झाबरमल्ल शर्मा