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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/११७

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा पांच पांच सालके बच्चोंको पढ़ानेके लिये वह खुद कैसा बच्चा बन जाता है:- "देर न कर । बेर ला दो। यह शेर है । दो सेर साग ले आ । फीस ले लो। इसकी रीस न कर। इसको पीस दो। बाग़की सैर कर । खर तो है। आज आये । कल जाये । रोटी खाये । पानी पीये। अनार लिये थे। पैसे दिये थे। राई पीसो। इसकी सिलाई अच्छी है। आज सबक़ हुआ था । मेरा क़लम किसने छुआ । मदरसे जल्द जाओ । मेरी किताब लाओ।" ____ कायदा पढ़कर बच्चा होशियार होगया है। उम्रमें भी कुछ ज्यादा हो गया है। अब वह उर्दूकी पहिली किताब पढ़ता है। देखिये आजाद उसके खयालात जाहिर करता है:- ___ "मां बच्चेको गोदमें लिये बैठी है, बाप हुक्का पी रहा है और देख देखकर खुश होता है। बच्चा आँग्व ग्बोले पड़ा है। अंगूठा चूस रहा है। मां मोहब्बत भरी निगाहोंसे उसके मुंहको तक रही है और प्यारसे कहती है मेरी जान ! वह दिन कब आयेगा ! कि मीठी मीठी बात करेगा ! बड़ा होगा, सेहरा बंधेगा ! दुल्हा बनेगा ! दुलहिन ब्याह लायेगा ! हम बुड्ढे होंगे! तू कमायेगा ! आप खायेगा ! हमें खिलायेगा ! बच्चा मुस्कराता है ; माँ का दिल बाग बाग हो जाता है । जब नन्हा-सा ओंठ निकालकर रोनी सूरत बनाता है, तो बेचैन हो जाती है।” और देखिये बच्चा आजाद जुलाहे मियोंके करघेके पाम खड़ा हुआ क्या गौर कर रहा है:- “जुलाहा.कपड़ा बुन रहा है । करघे पर बैठा है । टूटे हुए तार सरपर लटक रहे हैं। एक हाथमें नाल है। दूसरेमें कंघीका हत्था । इधर नाल फकता है। उधर लपकता है। और कंघीसे ठोंकता जाता है। छोटासा लड़का देख रहा है । वाहरे तेरी फुरती ! जहाँ तार टूटता है, वहीं झट जोड़ [ १०० ]