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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२४१

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गुप्त-निबन्धावली चिठे और खत न समझिये कि आपके किसी गुणपर मोहित होकर जाते हैं। वह जैसे आंखोंपर पट्टी बांधे जाते हैं, वैसेही चले आते हैं, जिस अंधेरेमें हैं, उसीमें रहते हैं ! अब यह कैसे मालूम हो कि लोग जिन बातोंको कष्ट मानते है, उन्हें श्रीमान भी कष्टही मानते हों ? अथवा आपके पूर्ववर्ती शासकने जो काम किये, आप भी उन्हें अन्याय भरे काम मोनते हों ? साथही एक और बात है। प्रजाके लोगोंकी पहुंच श्रीमान तक बहुत कठिन है । पर आप- का पूर्ववतीं शासक आपसे पहलेही मिल चुका और जो कहना था वह कह गया। कैसे जाना जाय कि आप उसकी बातपर ध्यान न देकर प्रजाकी बातपर ध्यान दंगे ? इस देशमें पदार्पण करनेके बाद जहाँ आप- को जरा भी खड़ा होना पड़ा है, वहीं उन लोगोंसे घिरे हुए रहे हैं, जिन्हें आपके पूर्ववती शासकका शासन पसन्द है। उसकी बात बनाई रखनेको अपनी इज्जत समझते हैं। अब भी श्रीमान चारों ओरसे उन्हीं लोगोंके धेरेमें हैं। कुछ करने धरनेकी बात तो अलग रहे, श्रीमानके विचारोंको भी इतनी स्वाधीनता नहीं है कि उन लोगोंके बिठाये चौकी पहरेको जरा भी उल्लंघन कर सके। तिसपर गजब यह कि श्रीमान्को इतनी भी खबर नहीं कि श्रीमानकी स्वाधीनता पर इतने पहरे बैठे हुए हैं । हां, यह खबर हो जाय तो वह हट सकते हैं। जिस दिन श्रीमानने इस राजधानीमें पदार्पण करके इसका सौभाग्य बढ़ाया, उस दिन प्रजाके कुछ लोगोंने सड़कके किनारोंपर खड़े होकर श्रीमानको बड़ी कठिनाईसे एक दृष्टि देख पाया। इसके लिये पुलिस पहरेवालोंकी गाली, घूसे और धक्क भी बरदाश्त किये । बस, उन लोगोंने श्रीमानके श्रीमुखकी एक झलक देख ली। कुछ कहने सुननेका अवसर उन्हें न मिला, न सहजमें मिल सकता । हुजूरने किमीको बुलाकर कुछ पूछताछ न की न सही, उसका कुछ अरमान नहीं, पर जो लोग दौड़कर [ २२४ ]