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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२७१

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गुप्त-निबन्धावली चिट्ठे और खत गोदके बच्चे क्या सदा गोदहीमें रह सकते हैं ? उफ ! अजीब मखमसेमें फँसे हो। तुम्हारे गोरे अफसर एक गोरे हाकिमकी खुशामदको तुमसे अजीज समझकर एक कान्स्टबलपर तुम्हें निसार करते हैं और तुम्हारे सेक्रेटरी द्रस्टी अपनी वफादारीके दामनपर दाग नहीं लगने देना चाहते! अगर वह तुम्हारी तरफदारी कर तो अंग्रेज अफसर उन्हें बागी समझगे! तुम्हारी सांप छूछू दरकीसी हालत हुई ! सबसे गजबकी बात है कि यह पस्तहिम्मती मेरी ही पालीसी बताई जाती है और इसका अमलदरआमद करना मेरी रूहको सवाब पहुंचाना समझा जाता है ! मेरा जी घबराता है कि हाय ! एक मामूलीसी कमजोरीके लिये यह जिल्लत ! जो झूठे टुकड़े अंग्रेज अपनी मेजपरसे इस मुल्कके हिन्दू-मुसलमानोंकी तरफ फक देते हैं, उनमें से दो चार मुसलमानोंके लिये ज्यादा लपक देनेके लिये यह जिल्लत ! इस वक्त कुछ समझमें नहीं आता कि क्या कहकर तुम्हें तसल्ली दूं। इससे एक उलुलअज्म शाइरका एक मिसरा पढ़कर यह स्वत खत्म करता हूं- "तुम्हीं अपनी मुशकिलको आसां करोगे।" सय्यद अहमद-अज अन्नत ( २५४ )