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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५२

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पण्डित माधवप्रसाद मिश्र भिवानी-निवामी पण्डितवर माधवप्रसाद मिश्र इस मंसारमें नहीं हैं। गत १६ अप्रेल ( मन १६०७ ई० ) को प्लेग-रोगसे उन्होंने शरीर-त्याग किया। भिवानीमें अबके फिर प्लेगका बहुत जोर हुआ था। उसके कारण आप मकुटुम्ब भिवानीक निकट 'कुंगड़" गांवमें चल गये थे, जो आपके बड़ोंका निवास स्थान है और जहाँका निवास अब भी एक दम छोड़ नहीं दिया गया है। वहीं आपकी मृत्यु हुई । इम ग्वबरने कलेजा हिला दिया। विश्वास न हुआ, कि कल तक जिमकी लेग्बनीसे भारी भारी लेव निकल रहे थे, आज वह नहीं है। पर खबर तो मच थी। बरी खबर झूठ क्यों होने लगी ? मन्ध्या तक बड़बाजारमें यह खबर फैल गई। जिसने सुना, दुःग्य प्रकाश किया। विशेषकर उनके इस जवान उमरमें मग्नेका ग्वयाल करके लोग अधिक अफसोम करते थे। अपने जीवनके पिछले तीन चार सालमें उन्होंने कलकत्तं का आना जाना बहुत बढ़ा लिया था और कई कई माम तक लगातार यहाँ रहते और सभा-समाजां और लेखोंकी बड़ी धुम रखते थे। इससे बड़ा- बाजार (कलकत्ता) के लोग उनसे बहुत परिचित होगये थे। यहीं तक कि कितनो हीसे उनकी मित्रता भी होगई थी। इसीसे इम खबरने बहुत लोगोंको विकल और विह्वल करदिया । मिश्र माधवप्रसाद हिन्दीके एक बड़े नामी लेखक थे। यदि वह कुछ दिन बच पाते और अपनी शक्तिको उचित रूपसे व्यवहार करनेका समय उन्हें मिलता, तो न जाने कैसी कैसी उत्तम चीज हिन्दीमें लिग्य जाते। उनके हिन्दीमें लेखनी उठानेकी अवधि दस सालसे अधिक है। उसमें भी आठही सालसे वह अखबारों में लिखने पढ़ने लगे थे। इस