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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६५३

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[[|]]गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता बदलेमें पाती असीस सानन्द बधाई । कोई अपनी प्यारीको कुछ आय सुनाती कहके सुखकी बात कानमें अधिक हंसाती । कोई करके छेड़ मरमकी आप लजाती सुख देती अपनी प्यारीको औ सुखपाती । खेल कूदकर इस प्रकार सब दिवस बिताती सांझ हुएसे पहिले अपने घरको आतीं। उघर खेलकर जङ्गलसे सब लड़के आते सरसोंकी टहनियां फूल टेसूके लाते । हंसते और खेलते सब आते प्रसन्न मन घरमें आकर पाते मीठे-मीठे भोजन । रातोंको गातीं वसन्त मिल सखियों सारी आ आ प्यारी वसन्त सब ऋतुओंमें प्यारी ।। कोसों तक पृथिवीपर रहतीं सरसों छाई देती हगकी पहुंच तलक पीतिमा दिखाई । सुन्दर सुन्दर फूल वह उसके चित्त लुभाने बीच बीचमें खेत गेहूं जौके मनमाने । वह बबूलकी छाया चितको हरनेवाली वह पीले पीले फूलोंकी छटा निराली। आस पास पालोंके वट वृक्षोंका झूमर जिसके नीचे वह गायों भैसोंका पोखर । ग्वालबाल सब जिनके नीचे खेल मचाते बंट चनेके लाते होले करते खाते । पशुगण जिनके तले बैठके आनन्द करते पानी पीते पगुराते स्वच्छन्द विचरते । [ ६३६ ]