सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा लगाकर दर्शनकी आलोचना करना योगीके ध्यानकं तुल्य था। इन बीस सालमें बोर्डिङ्ग हाउसकी मालिकनीको भी उसने अपने पढ़नेके घरका ठिकाना न बताया। इसीलिये कि नौकर पता बता दंगे तो लोग आकर उसके एकान्त विचारमें वाधा देंगे, अथवा जानकर भी उन्हें कहना पड़े कि हम उनका पता नहीं जानते। • स्पेन्सरकी एक जीवनी स्वयं लिखी हुई है। इसमें मृत्युसे १३ साल पहले तककी सब बात हैं। क्त जीवनीसे विदित होता है कि वह अपने माता पिताका अकेला पुत्र था। कोई भाई बहिन उसके न था। इससे उसका स्वभाव खूब उद्धत था। लड़कपनमें लड़कोंसे तर्क करने और अपने तर्कके जोरसे उनको हरा देने में उसे बड़ा मजा मिलता था। किसीकी बातपर भी वह चुपचाप हाँ न करता था। कुछ न कुछ तक निकालता। इसीसे सब बातोंका तथ्य निकालनेकी ओर उसकी तबी- यतका झुकाव हो गया था। ऐसी आदत पर दोष लगाया जासकता है, पर वही स्वभाव सिद्ध थी; मिट नहीं मकती थी। इस प्रकार स्पेन्सरने अपनी एक एक बातकी खोज करके उसके गुण दोष दिखाये हैं। उसका जन्म २७ अप्रेल सन १८२० ई० को हुआ। उसके बाद उसके पिताके पांच बालक हुए, पर आठ आठ दस दस दिनसे अधिक न जिये। लड़कपनमें स्पेन्सरको लिखना पढ़ना मिखाना कठिन होगया था। एक तो वह अकेला लाडला था, दूसरे दुष्ट। स्कूलमें सबसे आगे दौड़ता और सब लड़कोंपर अफसरी करता। लड़कपनमें वह माताके पास बहुत रहता था। पिताने सोचा कि कहीं और भेजना चाहिये: यहां वह पढ़ लिखेगा नहीं।। हिन्टन नगरमें उसका एक चचा पादरी था, वहीं उसके भेजनेकी सलाह हुई। जाते समय स्पेन्सरने कुछ न कहा। समझा कि चाचासे मिलने जाना है। इस दिन चाचाके पास वह प्रसन्न रहा। पीछे उतने जाना कि माताके पास अब जाना न [ ५० ]