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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६७१

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स्वर्गीय कवि ( पण्डिन प्रतापनारायण मिश्रके शोकमें । ) हे कवि ! कहं तुम कौन स्वर्गमें वास तुम्हारो ? कौन दिव्य वह लोक इहांत कितो पसारो ? ध्रुव ब्रह्मा, सिव, विष्णु, देवपतिके लोकन महं किम्बा औरहु उंचो लोक विराजत हो जहं। रहो कतहुं किनपे राखो अनुरोध हमारो एकबार स्वर्गीय दया-दृष्टिसे निहारो। नभके उज्ज्वल आंगन महं दरसन दिखराओ भूके हतभागिन कहं सुरपुर कथा सुनाओ। मत्यलोकको अघी नरकको कीट कहाऊं स्वर्गद्वारमें धसन अहो कवि ! कैसे पाऊं ? कहं ऐसो मम भाग्य प्रान अवसान भये पर पाऊं देव ! प्रफुल्ल-चित्त सुरपुर-भीतर घर ? पुञ्ज पुञ्ज तव पुण्य अहो कवि ! आगे आयो पुण्यमयी कविताने अपनो बल दिखरायो । हे जसभागी ! उहां ठाव सुरपुरमें पाई इहां भूमिपर रही रावरी कीरति छाई । लै बीना स्वर्गीय, स्वर्गको गीत सुनाओ। मर्त्यलोक-वासीकी यह अभिलाष मिटाओ। मर्त्य-गान जो मर्त्य-कलेवर महं तुम गाये अच्छर अच्छर जिनके अमृत माहं डुबाये, सुनि हैं तिन कहं निसदिन मर्त्यकलेवर धारी जबलौं रहे प्रानको तनमैं तातो जारी [ ६५४ ]