सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा "दृमरी वाटिकासे क्या फल तोड़ते हो, मेरी वाटिका (गुलिस्तान) से एक पत्र ले लो। और मब फल पांच छः दिन ताजा रहेंगे, पर मेरी गुलिस्तान सदा हरी-भरी रहेगी। ठीक उस कथनके अनुसार बोम्तान- को ६६४ माल और गुलिस्तानको ६६३ माल हिजरी हो गये । अभी और भी न जाने कितने वर्ष वह शग्व सादी और उसके समयको जिलाये रखंगी। ___ --भारतमित्र १९०१ ई. शाइस्ताखाँ यह शाइस्तारखा वही है. जिससे एक दफ. शिवाजीकी मुठभेड़ हुई थी। उस समय शाइस्ताम्बा औरंगजेब बादशाहको तरफसे दक्षिणका सूबेदार बना था। औरंगाबाद उम सूबकी राजधानी था। उम ममय शिवाजीने बीजापुरक शाहको दबाकर मुगलोंकी सनापर हमला किया और लूटमार करते औरंगाबाद तक पहुंचा। इसपर शाइस्ताग्वाने शिवाजीको दबानेका इरादा किया। उसने पहले दक्षिणकी ओर बढ़कर चाकन फतेह किया और फिर ग्वाम पूना परही अधिकार करलिया, वहाँ उस मकानमें जाकर उनग, जहां शिवाजी पला था। शिवाजी एक दिन चिराग़ जले कुछ आदमियोंको माथ लेकर एक बरातमें मिल गया और आंग्व बचाकर उमी मकानमें जा घुसा, जहां शाइस्ताग्वां उतरा हुआ था। शाइस्ताखां खिड़कीसे कूदकर भाग गया और उसकी दो अंगुलियां शिवाजीकी तलवारसे कटकर वहीं रहगई। शाइम्नाग्यांका बेटा और उसके साथी वहीं मारे गये। यही शाइस्ताखां पीछे बंगालका सूबेदार नियत हुआ। पहले मीर- जमला बंगालका सूबेदार था। मीरजुमलाकी मृत्युपर मन १६६ ईस्वी में औरंगजेबने शाइम्ताखांको बंगालका हाकिम नियत किया। यह सुप्रसिद्ध