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पृष्ठ:गोदान.pdf/१०३

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गोदान : 103
 

'किसी से कहेगी तो नहीं?'

'कहूंगी नहीं, तो गांव वाले मुझे गहने कैसे गढ़वा देंगे।'

'अगर किसी से कहा, तो मार ही डालूंगा।'

'मुझे मारकर सुखी रहोगे। अब दूसरी मेहरिया नहीं मिली जाती। जब तक हूं, तुम्हारा घर संभाले हुए हूं जिस दिन मर जाऊंगी, सिर पर हाथ धरकर रोओगे। अभी मुझमें सारी बुराइयां ही बुराइयां हैं, तब आंखों में आंसू निकलेंगे।'

'मेरा संदेह तो हीरा पर होता है।'

'झूठ, बिल्कुल झूठ। हीरा इतना नीच नही है। वह मुंह का ही खराब है।'

'मैंने अपनी आंखों देखा। सच तेरे सिर की सौंह।'

'तुमने अपनी आंखों देखा। कब?'

'वही, मैं सोभा को देखकर आया, तो वह सुन्दरिया की नांद के पास खड़ा था। मैंने पूछा-कौन है, तो बोला, मैं हूं हीरा, कौड़े में से आग लेने आया था। थोड़ी देर मुझसे बातें करता रहा। मुझे चिलम पिलाई। वह उधर गया,मैं भीतर आया और वहीं गोबर ने पुकार मचाई। मालूम होता है , मैं गाय बांधकर सोभा के घर गया हूं, और इसने इधर आकर कुछ खिला दिया है। साइत फिर यह देखने आया था कि मरी या नहीं।'

धनिया ने लंबी सांस लेकर कहा-इस तरह के होते हैं भाई, जिन्हें भाई का गला काटने में भी हिचक नही होती। उफ्फोह । हीरा मन का इतना काला है। और दाढ़ीजार को मैंने पाल-पोसकर बड़ा किया।

'अच्छा, जा सो रह, मगर किसी से भूलकर भी जिकर न करना।'

'कौन, सबेरा होते ही लाला को थाने न पहुंचाऊंतो अपने असल बाप की नहीं। यह हत्यारा भाई कहने जोग है यही भाई का काम है । वह बैरी है, पक्का बैरी और बैरी को मारने में पाप नहीं, छोड़ने में पाप है।'

होरी ने धमकी दी—मैं कह देता हूं धनिया, अनर्थ हो जायगा।

धनिया आवेश में बोली-अनर्थ नहीं, अनर्थ का बाप हो जाय। मैं लाला को बिना बड़े घर भिजवाए, मानूंगी नहीं। तीन साल चक्की पिसवाऊंगी, तीन साल। वहां से छूटेंगे, तो हत्या लगेगी, तीरथ करना पड़ेगा। भोज देना पड़ेगा। इस धोखे में न रहें लाला और गवाही दिलवाऊंगी तुमसे, बेटे के सिर पर हाथ रखकर।

उसने भीतर जाकर किवाड़ बंद कर लिए और होरी बाहर अपने को कोसता पड़ा रहा। जब स्वयं उसके पेट में बात न पची, तो धनिया के पेट में क्या पचेगी? अब यह चुडैल मानने वाली नहीं। जिद पर आ जाती है, तो किसी की सुनती ही नहीं। आज उसने अपने जीवन में सबसे बड़ी भूल की।

चारों ओर नीरव अंधकार छाया हुआ था। दोनों बैलों के गले की घंटियां कभी-कभी बज उठती थीं। दस कदम पर मृतक गाय पड़ी हुई थी और होरी घोर पश्चात्ताप में करवटें बदल रहा था। अंधकार में प्रकाश की रेखा कहीं नजर न आती थी।