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पृष्ठ:गोदान.pdf/१४९

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गोदान:149
 


का अंग नहीं है। मालती ने तो आज के लिए नए फैशन की साड़ी निकाली थी, नए काट के जंपर बनवाए थे। और रंग-रोगन और फूलों से खूब सजी हुई थी, मानो उसका विवाह हो रहा हो। वीमेंस लीग में इतना समारोह और कभी न हुआ था। डाक्टर मेहता अकेले थे, फिर भी देवियों के दिल कांप रहे थे। सत्य की एक चिंगारी असत्य के एक पहाड़ को भस्म कर सकती है।

सबसे पीछे की सफ मिर्जा और खन्ना और संपादकसी भी विराज रहे थे। रायसाहब भाषण शुरू होने के बाद आए और पीछे खड़े हो गए।

मिर्जा ने कहा-आ जाइए आप भी, खड़े कब तक रहिएगा?

रायसाहब बोले—नहीं भाई, यहां मेरा दम घुटने लगेगा।

'तो मैं खड़ा होता हूं। आप बैठिए।'

रायसाहब ने उनके कंधे दबाए-तकल्लुफ नहीं, बैठे रहिए। मैं थक जाऊंगा, तो आपको उठा दूंगा और बैठ जाऊंगा, अच्छा मिस मालती सभा नेत्री हुई। खन्ना साहब कुछ इनाम दिलवाइए।

खन्ना ने रोनी सूरत बनाकर कहा-अब मिस्टर मेहता पर निगाह है। मैं तो गिर गया।

मिस्टर मेहता का भाषण शुरू हुआ-

'देवियों, जब मैं इस तरह आपको संबोधित करता हूं, तो आपको कोई बात खटकती नहीं। आप इस सम्मान को अपना अधिकार समझती हैं, लेकिन आपने किसी महिला को पुरुषों के प्रति 'देवता' का व्यवहार करते सुना है? उसे आप देवता कहें, तो वह समझेगा, आप उसे बना रही हैं। आपके पास दान देने के लिए दया है, श्रद्धा है, त्याग है। पुरुष के पास दान के लिए क्या है? वह देवता नहीं, लेवता है। वह अधिकार के लिए हिंसा करता है, संग्राम करता है, कलह करता है...'

तालियां बजीं। रायसाहब ने कहा-औरतों को खुश करने का इसने कितना अच्छा ढंग निकाला।

'बिजली' संपादक को बुरा लगा-कोई नई बात नहीं। कितनी ही बार यह भाव व्यक्त कर चुका हूं।

मेहता आगे बढ़े-इसलिए जब मैं देखता हूं, हमारी उन्नत विचारों वाली देवियां उस दया और श्रद्धा और त्याग के जीवन से असंतुष्ट होकर संग्राम और कलह और हिंसा के जीवन की ओर दौड़ रही हैं और समझ रही हैं कि यही सुख का स्वर्ग है, तो मैं उन्हें बधाई नहीं दे सकता।

मिसेज खन्ना ने मालती की ओर सगर्व नेत्रों से देखा। मालती ने गर्दन झुका ली।

खुर्शेद बोले-अब कहिए। मेहता दिलेर आदमी है। सच्ची बात कहता है और मुंह पर।

'बिजली' संपादक ने नाक सिकोड़ी-अब वह दिन लद गए, जब देवियां इन चकमों में आ जाती थीं। उनके अधिकार हड़पते जाओ और कहते आओ, आप तो देवी हैं, लक्ष्मी हैं, माता हैं।

मेहता आगे बढ़े-स्त्री को पुरुष के रूप में, पुरुष के कर्म में रत देखकर मुझे उसी तरह वेदना होती है, जैसे पुरुष को स्त्री के रूप में, स्त्री के कर्म करते देखकर। मुझे विश्वास है, ऐसे पुरुषों को आप अपने विश्वास और प्रेम का पात्र नहीं समझतीं और मैं आपको विश्वास दिलाता