सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोदान.pdf/१६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
160 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


नहीं होती, पर संवाददाता ने ऐसे प्रमाण दिए हैं कि सहसा अविश्वास भी नहीं किया जा सकता। क्या यह सच है कि रायसाहब ने अपने इलाके के एक आसामी से अस्सी रुपये तावान इसलिए वसूल किए कि उसके पुत्र ने एक विधवा को घर में डाल लिया था? संपादक का कर्तव्य उन्हें मजबूर करता है कि वह मुआमले की जांच करें और जनता के हितार्थ उसे प्रकाशित कर दें। रायसाहब इस विषय में जो कुछ कहना चाहें, संपादकजी उसे भी प्रकाशित कर देंगे। संपादकजी दिल से चाहते हैं कि यह खबर गलत हो, लेकिन उसमें कुछ भी सत्य हुआ, तो वह उसे प्रकाश में लाने के लिए विवश हो जायंगे। मैत्री उन्हें कर्त्तव्य-पथ से नहीं हटा सकती।

रायसाहब ने यह सूचना पाई, तो सिर पीट लिया। पहले तो उनको ऐसी उत्तेजना हुई कि जाकर ओंकारनाथ को गिनकर पचास हंटर जमाएं और कह दें, जहां वह पत्र छापना, वहां यह समाचार भी छाप देना, लेकिन इसका परिणाम सोचकर मन को शांत किया और तुरंत उनसे मिलने चले। अगर देर की, और ओंकारनाथ ने वह संवाद छाप दिया, तो उनके सारे यश में कालिमा पुत जायगी।

ओंकारनाथ सैर करके लौटे थे और आज के पत्र के लिए संपादकीय लेख लिखने की चिंता में बैठे हुए थे, पर मन पक्षी की भांति उड़ा-उड़ा फिरता था। उनकी धर्मपत्नी ने रात उन्हें कुछ ऐसी बातें कह डाली थीं, जो अभी तक कांटों की तरह चुभ रही थीं। उन्हें कोई दरिद्र कह ले, अभागा कह ले, कह ले, वह जरा भी बुरा न मानते थे, लेकिन यह कहना कि उनमें पुरुषत्व नहीं है, यह उनके लिए असहय था। और फिर अपनी पत्नी को यह कहने का क्या हक है? उससे तो यह आशा की जाती है कि कोई इस तरह का आक्षेप करे, तो उसका मुंह बंद कर दे। बेशक वह ऐसी खबरें नहीं छापते, ऐसी टिप्पणियां नहीं करते कि सिर पर कोई आफत आ जाय। फूक-फूककर कदम रखते हैं। इन काले कानूनों के युग में वह और कर ही क्या सकते हैं, मगर वह क्यों सांप के बिल में हाथ नहीं डालते? इसीलिए तो कि उनके घर वालों को कष्ट न उठाने पड़ें। और उनकी सहिष्णुता का उन्हें यह पुरस्कार मिल रहा है? क्या अंधेर है। उनके पास रुपये नहीं हैं, तो बनारसी साड़ी कैसे मंगा दें? डाक्टर, सेठ और प्रोफेसर भाटिया और न जाने किस-किसकी स्त्रियां बनारसी साड़ी पहनती हैं, तो वह क्या करें? क्यों उनकी पत्नी इन साड़ीवालियों को अपनो खद्दर की साड़ी से लज्जित नहीं करती? उनकी खुद तो यह आदत है कि किसी बड़े आदमी से मिलने जाते हैं, तो मोटे से मोटे कपड़े पहन लेते हैं और कोई कुछ आलोचना करे, तो उसका मुंहतोड़ जवाब देने को तैयार रहते हैं। उनकी पत्नी में क्यों वही आत्माभिमान नहीं है? वह क्यों दूसरों का ठाट-बाट देखकर विचलित हो जाती है? उसे समझना चाहिए कि वह एक देश-भक्त पुरुष की पत्नी है। देश-भक्त के पास अपनी भक्ति के सिवा और क्या संपत्ति है? इसी विषय को आज के अग्रलेख का विषय बनाने की कल्पना करते-करते उनका ध्यान रायसाहब के मुआमले की ओर जा पहुंचा। रायसाहब सूचना का क्या उत्तर देते हैं, यह देखना है। अगर वह अपनी सफाई देने में सफल हो जाते हैं, तब तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर वह यह समझें कि ओंकारनाथ दबाव, भय या मुलाहजे में आकर अपने कर्तव्य से मुंह फेर लेंगे तो यह उनका भ्रम है। इस सारे तप और साधना का पुरस्कार उन्हें इसके सिवा और क्या मिलता है कि अवसर पड़ने पर वह इन कानूनी डकैतों का भंडाफोड़ करें। उन्हें खूब मालूम है कि रायसाहब बड़े प्रभावशाली जीव