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पृष्ठ:गोदान.pdf/१७०

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170 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


मामूली गोई आ जायगी, लेकिन महाजनों को क्या करे। दातादीन, मंगरू, दुलारी, झिंगुरीसिंह सभी तो प्राण खा रहे थे। अगर महाजनों को देने लगेगा, तो सौ रुपये सूद-भर को भी न होंगे। कोई ऐसी जुगत न सूझती थी कि ऊख के रुपये हाथ में आ जायं और किसी को खबर न हो। जब बैल घर आ जायेंगे, तो कोई क्या कर लेगा? गाड़ी लदेगी, तो सारा गांव देखेगा ही, तौल पर जो रुपये मिलेंगे, वह सबको मालूम हो जायंगे। संंभव है, मंगरू और दातादीन हमारे साथ-साथ रहें। इधर रुपये मिले, उधर उन्होंने गर्दन पकड़ी।

शाम को गिरधर ने पूछा-तुम्हारी ऊख कब तक जायगी होरी काका?

होरी ने झांसा दिया-अभी तो कुछ ठीक नहीं है भाई, तुम कब तक ले जाओगे?

गिरधर ने भी झांसा दिया- अभी तो मेरा भी कुछ ठीक नहीं है काका।

और लोग भी इसी तरह की उड़नघाइयां बताते थे, किसी को किसी पर विश्वास न था। झिंगुरीसिंह के सभी रिनियां थे,और सबकी यही इच्छा थी कि झिंगुरीसिंह के हाथ रुपये न पड़ने पाएं, नहीं वह सब-का-सब हजम कर जायगा। और जब दूसरे दिन असामी फिर रुपये मांगने जायगा, तो नया कागज, नया नजराना, नई तहरीर। दूसरे दिन शोभा आकर बोला-दादा, कोई ऐसा उपाय करो कि झिंगुरीसिंह को हैजा हो जाय। ऐसा गिरे कि फिर न उठे।

होरी ने मुस्कराकर कहा-क्यों, उसके बाल-बच्चे नहीं हैं?

'उसके बाल-बच्चों को देखें कि अपने बाल-बच्चों को देखें? वह तो दो-दो मेहरियां को आराम से रखता है, यहां तो एक को रूखी रोटी भी मयस्सर नहीं। सारी जमा ले लेगा। एक पैसा भी घर न लाने देगा।'

'मेरी तो हालत और भी खराब है भाई, अगर रुपये हाथ से निकल गये, तो तबाह हो जाऊंगा। गोई के बिना तो काम न चलेगा।'

'अभी तो दो-तीन दिन ऊख ढोते लगेंगे। ज्योंही सारी ऊख पहुंच जाय, जमादार से कहे कि भैया कुछ ले ले, मगर ऊख झटपट तौल दे, दाम पीछे देना। इधर झिंगुरी से कह देंगे, अभी रुपये नहीं मिले।'

होरी ने विचार करके कहा झिंगुरीसिंह हमसे-तुमसे कई गुना चतुर है सोभा। जाकर मुनीम से मिलेगा और उसी से रुपये ले लेगा। हम-तुम ताकते रह जायंगे। जिस खन्ना बाबू का मिल है, उन्हीं खन्ना बाबू की महाजनी कोठी भी है। दोनों एक हैं।

सोभा निराश होकर बोला-न जाने इन महाजनों से कभी गला छूटेगा कि नहीं।

होरी बोला-इस जनम में तो कोई आसा नहीं है भाई! हम राज नहीं चाहते, भोग-विलास नहीं चाहते, खाली मोटा-झोटा पहनना, और मोटा-झोटा खाना और मरजाद के साथ रहना चाहते हैं, वह भी नहीं सधता।

सोभा ने धूर्तता के साथ कहा-मैं तो दादा, इन सबों को अबकी चकमा दूंगा। जमादार को कुछ दे-दिलाकर इस बात पर राजी कर लूंगा कि रुपये के लिए हमें खूब दौड़ाएं झिंगुरी कहा तक दौड़ेंगे।

होरी ने हंसकर कहा—यह सब कुछ न होगा भैया। कुसल इसी में है कि झिंगुरीसिंह के हाथ-पांव जोड़ो। हम जाल में फंसे हुए हैं। जितना ही फड़फड़ओगे, उतना ही ओर जकड़ते जाओगे।

'तुम तो दादा, बूढ़ों की-सी बातें कर रहे हो। कठघरे में फंसे बैठे रहना तो कायरता है।