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गोदान : 199
 


हुए थे। और गोबर चमाचम बूट पहने था। साफ-सुथरी धारीदार कमीज, संवारे हुए बाल, पूरा बाबू साहब बना हुआ। फटेहाल गोबर और इस परिष्कृत गोबर में बड़ा अंतर था हिंसा-भाव तो यों ही समय के प्रभाव से शांत हो गया था और बचा-खुचा अब शांत हो गया। जुआरी था ही, उस पर गांजे की लत और घर में बड़ी मुश्किल से पैसे मिलते थे। मुंह में पानी भर आया। बोला-चलूंगा क्यों नहीं, यहां पड़ा-पड़ा मक्खी ही तो मार रहा हूं। कै रुपये मिलेंगे?

गोबर ने बड़े आत्मविश्वास से कहा-इसकी कुछ चिंता मत करो। सब कुछ अपने ही हाथ में है। जो चाहोगे, वह हो जायगा। हमने सोचा, जब घर में ही आदमी है, तो बाहर क्यों जाएं?

जंगी ने उत्सुकता से पूछा--काम क्या करना पड़ेगा?

काम चाहे चौकीदारी करो, चाहे तगादे पर जाओ। तगादे का काम सबसे अच्छा। अमामी से गठ गए। आकर मालिक से कह दिया, घर पर मिला ही नहीं, चाहो तो रुपये-आठ आने जो बना सकते हो।

'रहने की जगह भी मिलती है।'

'जगह की कौन कमी? पूरा महल पड़ा है। पानी का नल, बिजली, किसी बात की कमी नहीं है। कामत हैं कि कहीं गए हैं?'

'दूध लेकर गए हैं। मुझे कोई बाजार नहीं जाने देता। कहते हैं, तुम तो गांजा पी जाते हो। मैं अब बहुत कम पीता हूं भैया, लेकिन दो पैस रोज तो चाहिए ही। तुम कामता से कुछ न कहना। मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।'

'हां-हां बेखटके चलो। होली के बाद।'

'तो पक्की रही'

दोनों आदमी बातें करते भोला के द्वार पर आ पहुंचे। भोला बैठे सुतली कात रहे थे। गोबर ने लपककर उनके चरण छुए और इस वक्त उसका गला सचमुच भर आया। बोला-काका मुझसे जो कुछ भूल-चूक हुई, उसे छमा करो।

भोला ने सुतली कातना बंद कर दिया और पथरीले स्वर में बोला -काम तो तुमने ऐसा ही किया था गोबर, कि तुम्हारा सिर काट दूं तो भी पाप न लगे, लेकिन अपने द्वार पर आए हो, अब क्या कहूं। जाओ, जैसा मेरे साथ किया, उसकी सजा भगवान् देंगे। कब आए?

गोबर ने खूब नमक-मिर्च लगाकर अपने भाग्योदय का वृत्तांत कहा, और जंगी को अपने साथ ले जाने की अनुमति मांगी। भोला को जैसे बेमांगे वरदान मिल गया। जंगी घर पर एक-न-एक उपद्रव करता रहता था। बाहर चला जाएगा, तो चार पैसे पैदा तो करेगा। न किसी को कुछ दे, अपना बोझ तो उठा लेगा।

गोबर ने कहा-नहीं काका, भगवान् ने चाहा और इनसे रहते बना तो साल-दो-साल में आदमी बन जाएंगे।

'हां, जब इनसे रहते बने।'

'सिर पर आ पड़ती है, तो आदमी आप संभल जाता है।'

'तो कब तक जाने का विचार है?'

'होली करके चला जाऊंगा। यहां खेती-बारी का सिलसिला फिर जमा दूं, तो निश्चिंत हो जाऊं।'