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216 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


हैं, यह मेरी अकेली लड़की है और उसकी मां मर चुकी है। वह आज जिंदा होती, तो शायद सारा घर लुटाकर भी उसे संतोष न होता। तब शायद मैं उसे हाथ रोककर खर्च करने का आदेश देता, लेकिन अब तो मैं उसकी मां भी हूं और बाप भी हूं। अगर मुझे अपने हृदय का रक्त निकालकर भी देना पड़े, तो मैं खुशी से दे दूंगा। इस विधुर-जीवन में मैंने संतान-प्रेम से ही अपनी आत्मा की प्यास बुझाई है। दोनों बच्चों के प्यार में ही अपने पत्नीव्रत का पालन किया है। मेरे लिए यह असंभव है कि इस शुभ अवसर पर अपने दिल के अरमान न निकालूं। मैं अपने मन को तो समझा सकता हूं, पर जिसे मैं पत्नी का आदेश समझता हूं, उसे नहीं समझाया जा सकता। और एलेक्शन के मैदान से भागना भी मेरे लिए संभव नहीं है। मैं जानता हूं, मैं हारूंगा? राजा साहब से मेरा कोई मुकाबला नहीं, लेकिन राजा साहब को इतना जरूर दिखा देना चाहता हूं कि अमरपालसिंह नर्म चारा नहीं है।

'और मुदकमा दायर करना तो आवश्यक ही है?'

'उसी पर तो सारा दारोमदार है। अब आए बतलाइए, आप मेरी क्या मदद कर सकते हैं।'

'मेरे डाइरेक्टरों का इस विषय में जो हुक्म है, वह आप जानते ही हैं। और राजा साहब भी हमारे डाइरेक्टर हैं, यह भी आपको मालूम है। पिछला वसूल करने के लिए बार-बार ताकीद हो रही है। कोई नया मुआमला तो शायद ही हो सके।

रायसाहब ने मुंह लटकाकर कहा-आप तो मेरा डोंगा ही डुबाए देते हैं मिस्टर खन्ना।

'मेरे पास जो कुछ निज का है, वह आपका है, लेकिन बैंक के मुआमले में तो मुझे स्वामियों के आदेशों को मानना ही पड़ेगा।'

'अगर यह जायदाद हाथ आ गई, और मुझे इसकी पूरी आशा है, तो पाई-पाई अदा कर दूंगा।'

'आप बतला सकते हैं, इस वक्त आप कितने पानी में हैं?'

रायसाहब ने हिचकते हुए कहा-पांच-छ: लाख समझिए। कुछ कम ही होंगे।

खन्ना ने अविश्वास के भाव से कहा-या तो आपको याद नहीं है, या आप छिपा रहे हैं।

रायसाहब ने जोर देकर कहा-जी नहीं, मैं न भूला हूं, और न छिपा रहा हूं। मेरी जायदाद इस वक्त कम-से-कम पचास लाक की है और ससुराल की जायदाद भी इससे कम नहीं है। इतनी जायदाद पर दस-पांच लाख का बोझ कुछ नहीं के बराबर है।

'लेकिन यह आप कैसे कह सकते हैं कि ससुराली जायदाद पर भी कर्ज नहीं है?'

'जहां तक मुझे मालूम है, वह जायदाद बे-दाग है।'

'और मुझे यह सूचना मिली है कि उस जायदाद पर दस लाख से कम का भार नहीं हैं। उस जायदाद पर तो अब कुछ मिलने से रहा, और आपकी जायदाद पर भी मेरे खयाल में दस लाख से कम देना नहीं है। और यह जायदाद अब पचास लाख की नहीं, मुश्किल से पचीस लाख की है। इस दशा में कोई बैंक आपको कर्ज नहीं दे सकता। यों समझ लीजिए कि आप ज्वालामुखी के मुख पर खड़े हैं। एक हल्की-सी ठोकर आपको पाताल में पहुंचा सकती है। आपको इस मौके पर बहुत संभलकर चलना चाहिए।'

रायसाहब ने उनका डाथ अपनी तरफ खींचकर कहा-यह सब मैं खूब समझता हूँ,