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गोदान : 239
 


सिलिया को जान पड़ा, जैसे उसकी आंख में नई ज्योति आ गई है। आवेश में सोना को छाती से लगाकर बोली-तूने इतनी अक्कल कहां से सीख ली सोना? देखने में तो तू बड़ी भोली भाली है।

'इसमें अक्कल की कौन बात हैं चुड़ैल। क्या मेरे आंखें नहीं हैं कि मैं पागल हूं? दो सौ मेरे ब्याह में लें। तीन-चार साल में वह दूना हो जाय। तब रुपिया के ब्याह में दो सौ और लें। जो कुछ खेती-बारी है, सब लिलाम-तिलाम हो जाय, और द्वार-द्वार पर भीख मांगते फिरें। यही न? इससे तो कहीं अच्छा है कि मैं अपनी जान दे दूं। मुंह अंधेरे सोनारी चली जाना और उसे बुला लाना। मगर नहीं, बुलाने का काम नहीं। मुझे उससे बोलते लाज आएगी। तू ही मेरा यह संदेसा कह देना। देख क्या जवाब देते हैं। कौन दूर है? नदी के उस पार ही तो है। कभी-कभी ढोर लेकर इधर आ जाता है। एक बार उसकी भैंस मेरे खेत में पड़ गई थी, तो मैंने उसे बहुत गालियां दी थीं, हाथ जोड़ने लगा। हां, यह तो बता, इधर मतई से तेरी भेंट नहीं हुई? सुना, बांभन लोग उन्हें बिरादरी में नहीं ले रहे हैं।

सिलिया ने हिकारत के साथ कहा-बिरादरी में क्यों न लेंगे, हां, बूढ़ा रुपये नहीं खरच करना चाहता। इसको पैसा मिल जाय, तो झूठी गंगा उठा ले। लड़का आजकल बाहर ओसारे में टिक्कड लगाता है।

'उसे छोड़ क्यों नहीं देती? अपनी बिरादरी में किसी के साथ बैठ जा और आराम से रह। वह तेरा अपमान तो न करेगा।'

'हां रे, क्यों नहीं, मेरे पीछे उस बेचारे की इतनी दुरदसा हुई, अब मैं उसे छोड़ दूं? अब वह चाहे पंडित बन जाय, चाहे देवता बन जाय, मेरे लिए तो वही मतई है, जो मेरे पैरों पर सिर रगड़ा करता था, और बांभन भी हो जाय और बांभनी से ब्याह भी कर ले, फिर भी जितनी उसकी सेवा मैंने की है, वह कोई बांभनी क्या करेंगी। अभी मान मरजाद के मोह में वह चाहे मुझे छोड़ दे, लेकिन देख लेना, फिर दौड़ा आएगा।'

'आ चुका अब, तुझे पा जाय तो कच्चा ही खा जाय।'

'तो उसे बुलाने ही कौन जाता है? अपना-अपना धरम अपने-अपने साथ है। वह अपना धरम तोड़ रहा है, तो मैं अपना भरम क्यों तोड़ूं?'

प्रातःकाल सिलिया सोनारी की ओर चली, लेकिन होरी ने रोक लिया। धनिया के सिर में दर्द था। उसकी जगह क्यारियों को बराना था। सिलिया इंकार न कर सकी। यहां से जब दोपहर को छुट्टी मिली तो वह सोनारी चली।

इधर तीसरे पहर होरी फिर कुएं पर चला तो सिल्लिया का पता न था। बिगड़कर बोला-सिलिया कहां उड़ गई? रहती है, रहती है, न जाने किधर चल देती है, जैसे किसी काम में जी ही नहीं लगता। तू जानती है सोना, कहां गई है?

सोना ने बहाना किया-मुझे तो कुछ मालूम नहीं कहती थी, धोबिन के घर कपड़े लेने जाना है, वहीं चली गई होगी।

धनिया ने खाट से उठकर कहा-चलो, मैं क्यारी बराए देती हूं। कौन उसे मजूरी देते हो जो बिगड़ रहे हो?

'हमारे घर में रहती नहीं है? उसके पीछे सारे गांव में बदनाम नहीं हो रहे हैं?'

'अच्छा, रहने दो, एक कोने में पड़ी हुई है, तो उससे किराया लोगे?'