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पृष्ठ:गोदान.pdf/२८५

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गोदान : 285
 


'मैं इसकी परवा नहीं करती।'

'भावुकता में न आओ मालती। प्रेम देने के पहले हम सब परीक्षा करते हैं और तुमने की, चाहे अप्रत्यक्ष रूप से ही की हो। मैं आज तुमसे स्पष्ट कहता हूं कि पहले मैंने तुम्हें इसी तरह देखा, जैसे रोज ही हजारों देवियों को देखा करता हूं, केवल विनोद के भाव से। अगर मैं गलती नहीं करता, तो तुमने भी मुझे मनोरंजन के लिए एक नया खिलौना समझा।'

मालती ने टोका-गलत कहते हो। मैंने कभी तुम्हें इस नजर से नहीं देखा। मैंने पहले ही दिन तुम्हें अपना देव बनाकर अपने हृदय....

मेहता बात काटकर बोले-फिर वही भावुकता। मुझे ऐसे महत्त्च के विषय में भावुकता पसंद नहीं, अगर तुमने पहले ही दिन से मुझे इस कृपा के योग्य समझा तो इसका यही कारण हो सकता है, कि मैं रूप भरने में तुमसे ज्यादा कुशल हूं, वरना जहां तक मैंने नारियों का स्वभाव देखा है, वह प्रेम के विषय में काफी छान-बीन करती हैं। पहले भी तो स्वयंवर से पुरुषों की परीक्षा होती थी? वह मनोवृत्ति अब भी मौजूद है चाहे उसका रूप कुछ बदल गया हो। मैंने तब से बराबर यही कोशिश की है कि अपने को सम्पूर्ण रूप से तुम्हारे सामने रख दूं और उसके साथ ही तुम्हारी आत्मा तक भी पहुंच जाऊं। और मैं ज्यों-ज्यों तुम्हारे अन्तस्तल की गहराई में उतरा हूं, मुझे रत्न ही मिले हैं। मैं विनोद के लिए आया और आज उपासक बना हुआ हूं। तुमने मेरे भीतर क्या पाया यह मुझे मालूम नहीं।

नदी का दूसरा किनारा आ गया। दोनों उतरकर उसी बालू के फर्श पर जा बैठे और मेहता फिर उसी प्रवाह में बोले-और आज मैं यहां वही पूछने के लिए तुम्हें लाया हूं?

मालती ने कांपते हुए स्वर में कहा-क्या अभी तुम्हें मुझसे यह पूछने की जरूरत बाकी है?

'हां, इसलिए कि मैं आज तुम्हें अपना वह रूप दिखाऊंगा, जो शायद अभी तक तुमने नहीं देखा और जिसे मैंने भी छिपाया है। अच्छा, मान लो, मैं तुमसे विवाह करके कल तुमसे बेवफाई करूं तो तुम मुझे क्या सजा दोगी?'

मालती ने उसकी ओर चकित होकर देखा। इसका आशय उसकी समझ में न आया।

'ऐसा प्रश्न क्यों करते हो?'

'मेरे लिए यह बड़े महत्व की बात है।'

'मैं इसकी सम्भावना नहीं समझती।'

'संसार में कुछ भी असम्भव नहीं है। बड़े-से-बड़ा महात्मा भी एक क्षण में पतित हो सकता है।'

'मैं उसका कारण खोजूंगी और उसे दूर करूंगी।'

'मान लो, मेरी आदत न छूटे।'

'फिर मैं नहीं कह सकती, क्या करूंगी। शायद विष खाकर सो रहूं।'

'लेकिन यदि तुम मुझसे यही प्रश्न करो, तो मैं उसका दूसरा जवाब दूंगा।'

मालती ने सशंक होकर पूछा-बतलाओ!

मेहता ने दृढ़ता के साथ कहा-मैं पहले तुम्हारा प्राणान्त कर दूंगा, फिर अपना।

मालती ने जोर से कहकहा मारा और सिर से पांव तक सिहर उठी। उसकी हंसी केवल उसकी सिहरन को छिपाने का आवरण थी।