सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोदान.pdf/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
गोदान : 29
 


मालूम होता था, अभी रोकर उठी है। उसके मांसल, स्वस्थ, सुगठित अंगों में मानो यौवन लहरें मार रहा था। मुंह बड़ा और गोल था, कपोल फूले हुए, आंखें छोटी और भीतर धंसी हुई, माथा पतला; पर वक्ष का उभार और गात का वही गुदगुदापन आंखों को खींचता था। उस पर छपी हुई गुलाबी साड़ी उसे और भी शोभा प्रदान कर रही थी।
भोला को देखते ही उसने लपककर उनके सिर से खांचा उतरवाया। भोला ने गोबर और होरी के खांचे उतरवाये और झुनिया से बोले -- पहले एक चिलम भर ला, फिर थोड़ा-सा रस बना ले। पानी न हो तो गगरा ला, मैं खींच दूं। होरी महतो को पहचानती है न?
फिर होरी से बोला -- घरनी के बिना घर नहीं रहता भैया। पुरानी कहावत है -- नाटन खेती बहुरियन घर। नाटे बैल क्या खेती करेंगे और बहुएँ क्या घर सँभालेंगी। जब से इसकी माँ मरी है, जैसे घर की बरकत ही उठ गयी। बहुएं आटा पाथ लेती हैं। पर गृहस्थी चलाना क्या जानें। हां, मुह चलाना खूब जानती हैं। लौंडे कहीं फड़ पर जमे होंगे। सब-के-सब आलसी हैं, कामचोर। जब तक जीता हूं , इनके पीछे मरता हूं । मर जाऊंगा, तो आप सिर पर हाथ धरकर रोयेंगे। लड़की भी वैसी ही है। छोटा-सा अढ़ौना भी करेगी, तो भुन-भुनाकर। मैं तो सह लेता हूं , खसम थोड़े ही सहेगा।
झुनिया एक हाथ में भरी हुई चिलम, दूसरे में लोटे का रस लिये बड़ी फुर्ती से आ पहुंची। फिर रस्सी और कलसा लेकर पानी भरने चली। गोबर ने उसके हाथ से कलसा लेने के लिए हाथ बढ़ाकर झेंपते हुए कहा -- तुम रहने दो, मैं भरे लाता हूं ।
झुनिया ने कलसा न दिया। कुएं के जगत पर जाकर मुस्कराती हुई बोली -- तुम हमारे मेहमान हो। कहोगे एक लोटा पानी भी किसी ने न दिया।
'मेहमान काहे से हो गया। तुम्हारा पड़ोसी ही तो हूं ।'
'पड़ोसी साल-भर में एक बार भी सूरत न दिखाये, तो मेहमान ही है।'
'रोज-रोज आने से मरजाद भी तो नहीं रहती।' झुनिया हँसकर तिरछी नजरों से देखती हुई बोली -- वही मरजाद तो दे रही हूं । महीने में एक बेर आओगे, ठंडा पानी दूंगी। पन्द्रहवें दिन आओगे, चिलम पाओगे। सातवें दिन आओगे, खाली बैठने को माची दूँगी। रोज-रोज आओगे, कुछ न पाओगे।
'दरसन तो दोगी?'
'दरसन के लिए पूजा करनी पड़ेगी।'
यह कहते-कहते जैसे उसे कोई भूली हुई बात याद आ गयी। उसका मुँह उदास हो गया। वह विधवा है। उसके नारीत्व के द्वार पर पहले उसका पति रक्षक बना बैठा रहता था। वह निश्चिन्त थी। अब उस द्वार पर कोई रक्षक न था, इसलिए वह उस द्वार को सदैव बन्द रखती है। कभी-कभी घर के सूनेपन से उकताकर वह द्वार खोलती है; पर किसी को आते देखकर भयभीत होकर दोनों पट भेड़ लेती है।
गोबर ने कलसा भरकर निकाला। सबों ने रस पिया और एक चिलम तमाखू और पीकर लौटे। भोला ने कहा -- कल तुम आकर गाय ले जाना गोबर, इस बखत तो सानी खा रही है।
गोबर की आंखें उसी गाय पर लगी हुई थी और मन-ही-मन वह मुग्ध हुआ जाता था। गाय इतनी सुन्दर और सुडौल है, इसकी उसने कल्पना भी न की थी।