सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोदान.pdf/३२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
320 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


फल है। मैंने गांव-भर में डोंडी पिटवा दी कि कोई भी बेसी लगान न दो और न खेत छोड़ो, हमको कोई कायल कर दे, तो हम जाफा देने को तैयार हैं, लेकिन जो तुम चाहो कि बेमुंह के किसानों को पीसकर पी जायं तो यह न होगा। गांववालों ने मेरी बात मान ली, और सबने जाफा देने से इंकार कर दिया। जमींदार ने देखा, सारा गांव एक हो गया है तो लाचार हो गया। खेत बेदखल भी कर दे, तो जोते कौन? इस जमाने में जब तक कड़े न पड़ो, कोई नहीं सुनता। बिना रोए तो बालक भी मां से दूध नहीं पाता।

रामसेवक तीसरे पहर चला गया और धनिया और होरी पर न मिटने वाला असर छोड़ गया। दातादीन का मंत्र जाग गया।

उन्होंने पूछा-अब क्या कहते हो होरी?

होरी ने धनिया की ओर इशारा करके कहा-इससे पूछो।

'हम तुम दोनों से पूछते हैं।'

धनिया बोली-उमिर तो ज्यादा है, लेकिन तुम लोगों की राय है, तो मुझे भी मंजूर है। तकदीर में जो लिखा होगा, वह तो आगे आएगा ही, मगर आदमी अच्छा है।

और होरी को तो रामसेवक पर वह विश्वास हो गया था, जो दुर्बलों को जीवट वाले आदमियों पर होता है। वह शेखचिल्ली के-से मंसूबे बांधने लगा था। ऐसा आदमी उसका हाथ पकड़ ले, तो बेड़ा पार है।

विवाह का मुहूर्त ठीक हो गया। गोबर को भी बुलाना होगा। अपनी तरफ से दो, आने न आने का उसे अख्तियार है। यह कहने को तो मुंह न रहे कि तुमने मुझे बुलाया कब था? सोना को भी बुलाना होगा।

धनिया ने कहा-गोबर तो ऐसा नहीं था, लेकिन जब झुनिया आने दे। परदेस जाकर ऐसा भूल गया कि न चिट्ठी न पत्री। न जाने कैसे हैं। -यह कहते-कहते उसकी आंखें सजल हो गईं।

गोबर को खत मिला, तो चलने को तैयार हो गया। झुनिया को जाना अच्छा तो न लगता था पर इस अवसर पर कुछ कह न सकी। बहन के ब्याह में भाई का न जाना कैसे संभव है। सोना के ब्याह में न जाने का कलंक क्या कम है?

गोबर आर्द्र कंठ से बोला-मां-बाप से खिंचे रहना कोई अच्छी बात नहीं है। अब हमारे हाथ-पांव हैं, उनसे खिंच लें, चाहे लड़ लें, लेकिन जन्म तो उन्हीं ने दिया, पाल पोसकर जवान तो उन्हों ने किया, अब वह हमें चार बात भी कहें, तो हमें गम खाना चाहिए। इधर मुझे बार बार अम्मां-दादा की याद आया करती है। उस बखत मुझे न जाने क्यों उन पर गुस्सा आ गया। तेरे कारन मां-बाप को भी छोड़ना पड़ा।

झुनिया तिनक उठी-मेरे सिर पर यह पाप न लगाओ, हां। तुम्हीं को लड़ने की सूझी थी। मैं तो अम्मां के पास इतने दिन रही, कभी सांस तक न लिया।

'लड़ाई तेरे कारन हुई।'

'अच्छा, मेरे ही कारन सही। मैंने भी तो तुम्हारे लिए अपना घर-बार छोड़ दिया।'

'तेरे घर में कौन तुझे प्यार करता था? भाई बिगड़ते थे, भावजें जलाती थीं। भोला जो तुझे पा जाते, तो कच्ची ही खा जाते।'

'तुम्हारे ही कारन।'

'अबकी जब तक रहें, इस तरह रहें कि उन्हें भी जिंदगानी का सुख मिले, उनकी