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पृष्ठ:गोदान.pdf/४९

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गोदान : 49
 


निकाल देंगेतो क्या संसार में दूसरा गांव ही नहीं है? और गांव क्यों छोड़े? मातादीन ने चमारिन बैठी ली, तो किसी ने क्या कर लिया? दातादीन दांत कटकटाकर रह गए। मातादीन ने इतना जरूर किया कि अपना धरम बचा लिया। अब भी बिना असनान-पूजा किए मुंह में पानी नहीं डालते। दोनों जून अपना भोजन आप पकाते हैं और अब तो अलग भोजन भी नहीं पकाते। दातादीन और वह साथ बैठकर खाते हैं। झिंगुरीसिंह ने बाम्हनी रख ली, उनका किसी ने क्या कर लिया? उनका जितना आदर-मान तब था, उतना ही आज भी है, बल्कि और बढ़ गया। पहले नौकरी खोजते फिरते थे। अब उसके रुपये से महाजन बन बैठे। ठकुराई का रोब तो था ही, महाजनी का रोब भी जम गया। मगर फिर खयाल आया, कहीं झुनिया दिल्लगी न कर रही हो। पहले इसकी ओर से निश्चित हो जाना आवश्यक था।

उसने पूछा-मन से कहती हो झूना कि खाली लालच दे रही हो? मैं तो तुम्हारा हो चुका, लेकिन तुम भी मेरी हो जाओगी?

'तुम मेरे हो चुके, कैसे जानूं?'

'तुम जान भी चाहो, तो दे दें।'

'जान देने का अरथ भी समझते हो'

'तुम समझा दो न।'

'जान देने का अरथ है, साथ रहकर निबाह करना। एक बार हाथ पकड़कर उमिर-भर निबाह करते रहना, चाहे दुनिया कुछ कहे, चाहे मां-बाप, भाई-बंद, घर-द्वार सब कुछ छोड़ना पड़े। मुंह से जान देने वाले बहुतों को देख चुकी। भौरों की भांति फूल का रस लेकर उड़ जाते हैं। तुम भी वैसे ही न उड़ जाओगे?

गोबर के एक हाथ में गाय की पगहिया थी। दूसरे हाथ से उसने झुनिया का हाथ पकड़ लिया। जैसे बिजली के तार पर हाथ पड़ गया हो। सारी देह यौवन के पहले स्पर्श से कांप उठी। कितनी मुलायम, गुदगुदी, कोमल कलाई।

झुनिया ने उसका हाथ हटाया नहीं, मानो इस स्पर्श का उसके लिए कोई महत्व ही न हो। फिर एक क्षण के बाद गंभीर भाव से बोली-आज तुमने मेरा हाथ पकड़ा है, याद रखना।

'खूब याद रखूंगा झूना और मरते दम तक निबाहूंगा।'

झुनिया अविश्वास भरी मुस्कान से बोली-इसी तरह तो सब कहते हैं गोबर। बल्कि इससे भी मीठे, चिकने शब्दों में। अगर मन में कपट हो, मुझे बता दो। सचेत हो जाऊं। ऐसों को मन नही देती। उनसे तो खाली हंस-बोल लेने का नाता रखती हूं। बरसो से दूध लेकर बाजार जाती हूं। एक-से-एक बाबू, महाजन, ठाकुर, वकील, अमले, अफसर अपना रसियापन दिखाकर मुझे फंसा लेना चाहते हैं। कोई छाती पर हाथ रखकर कहता है, झुनिया, तरसा मत,कोई मुझे रसीली, नसीली चितवन से घूरता है, मानो मारे प्रेम के बेहोस हो गया है, कोई रुपया दिखाता है, कोई गहने। सब मेरी गुलामी करने को तैयार रहते हैं, उमिर-भर, बल्कि उस जनम में भी, लेकिन मैं उन सबों की नस पहचानती हूं। सब-के-सब भौंरे रस लेकर उड़ जाने वाले। मैं भी उन्हें ललचाती हूं, तिरछी नजरों से देखती हूं, मुस्कराती हूं। वह मुझे गधी बनाते हैं, मैं उन्हें उल्लू बनाती हूं। मैं मर जाऊं, तो उनकी आंखों में आंसू न आएगा। वह मर जायं, तो मैं कहूंगी, निगोड़ा मर गया। मैं तो जिसकी हो जाऊंगी, उसकी जनम-भर के लिए हो जाऊंगी, सुख में, दु:ख में, सम्पत में, विपत