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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२४७

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[गोरख-बान देवरी बोलिये मन, भूचरी बोलिये पवन, गुप्त बोलिये ग्यांन, प्रगट चोलिये सरीर । सरीरारय परमारथ', गूदारय । ते कोण कोण । सरीरारथ बोलिये सरीर भेद, परमारथ' वालिये प्रांण भेद, मूठारम बोलि विचार चारी पीर बोलिजै घट भीतरि । ते कोण कोण। मन मछिंद्रनाथ', पवन' ईश्वरनाथ, चेतना चौरंगीनाथ, रखांन भी गोरपनाथ। पारि तकबीर बोलिजै घट भी तरि । ते कोण कोण । दृष्टि कहे क्यू लीजै दीजै, सुरति कहै क्यू बोलिये सुणिये, नासका कहै क्यू सुगंध वास परमलादि१२ लीजै, निभ्या कहै क्यू पाटी मीठी४ पाइये। चारि दिशा बोलिये ५ घन मीतरि । ते कोण कोण । सबद योलिये उत्तर, पवन वोलिये पछिम, दृष्टि बोलिये दपिण"सुरति बोलिये१६ पूरव । पारि पाप कना १८ चोलिये घट मीतरि । ते कोण कोण उरम धूरम जोति न्वाला। परमत्व =परिमस ४. १. (क) प्रमारय । २. (घ) बोलिए। ३ (घ) छान । (घ) च्या ५. (१) में 'नापा किसी पीर के नाम के साथ नहीं : ६. (प) सरीर । ७. । चित । ८. (घ) में 'श्री' भी नहीं। ९. (प) क्यौं । १०. (घ) बोलीये तुणी ११. (प) नासिका । १२. (घ) वसन प्रमालादिक । १३. (घ) जिहा । १४. । पाटो मीठो; (क) पाटी मीठा । १५. (घ) बोलीये । १६. (घ) में इस उत्त 'बोलिये नही है। और (क) में पहले 'ते काण' नहीं है। १७. (प) दि १८.(प) उपदिसं। १९. (प) इसके बाद एक वाक्य में 'ऊरम' इत्य प्रत्येक भाग-मत्ता के माय 'कौवा जोदकर प्रश्न पूछा गया है।