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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२९२

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गोरख-बानी] २४७ [ख]-(४) अष्ट मुद्रा स्वामीजी अष्ट मुद्रा बोलिए घट भींतरि, ते कौंण कौंण । अवधू यंद्री मध्ये मूलनी मुद्रा, काम त्रिष्णा ले उतपनी काम । काम त्रिष्णा समो कृतवा, मुद्रा तो भई मूलनी ।। नाभी मधे जलश्री मुद्रा, काल क्रोध ले उतपनी । काल क्रोध समो कृतवा, मुद्रा तौ भई जलश्री॥ हुदा मधे पोरनी मुद्रा, ग्यांन दीप ले उतपनी। ग्यांन दीप समो कृतवा, मुद्रा तो भई पोरनी॥ मुष मध्ये पेचरी मुद्रा, स्वाद बिस्वाद ले उत्तपनी। स्वाद विस्वाद समोकृतवा, मुद्रा तो भई षेचरी ।। नासिका मध्ये भूचरी मुद्रा, गंध विगंध ले उतपनी। गन्ध विगन्ध समो कृतवा, मुद्रा तौ भई भूचरी ।। चषि मध्ये चाचरी मुद्रा, दिष्टि विदिष्टि ले उतपनी । दिष्टि विदिष्ट समो कृतवा, मुद्रा तौ भई चाचरी।। करण मध्ये अगोचरी मुद्रा, सबद कुसवद ले उतपनी। सवद कुसबद समो कृतवा, मुद्रा तौ भई अगोचरी।। ब्रह्म'ड असथानि उनमनी मुद्रा, परम जोति लै उतपनी। परम जोति समो कुतचा, मुद्रा तो भई उनमनी ।। यती अष्ट मुद्रा का जाणै भेव । सो श्राप करता आपै देव ।। इती अष्ट मुद्रा कर्थत श्री गोरपनाथ जती संपूर्ण समापत सिवाय ।