सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोरा.pdf/३४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ३४७
गोरा

गोरा [३४७ ललिता केवल क्रोधके आवेशमें आकर विद्रोह करके उद्धत भाव नहीं प्रकट सुचरिताने सिर झुकाकर कहा -न बाबूजी, अगर यह बात होती, तो मैं उसकी बात बिलकुल सुनती ही नहीं। उनके मन में जो बात खूब गहरी जमी हुई थी, वही अकस्मात आघात पाकर एकदम बाहर निकल पड़ी है। इस समय उस बातको किसी तरह दबा देनेकी चेष्टा करनेसे ललिता जैसी लड़कीके लिए वह कभी भला न होगा । बाबूजी, विनय वाबू तो श्रादमी बड़े अच्छे हैं। परेश० -अच्छा, विनय क्या ब्राह्म समाजमें आनेको राजी होगा? सुचरिता-सो सो मैं ठीक कह नहीं सकती । अच्छा बाबूजी, एक बार गोरा बाबकी मौके पास हो आऊँ ? परेशर-मैं भी यही सोच रहा था कि उनके पास हो आना अच्छा होगा।