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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१७

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पहला अध्याय भारत के कुछ साधारण कुटुंब भी व्यापारिक उन्नति के कारण करोड़पति बन बैठे थे, तब हरएक मुँह पर भारत के ऐश्वर्य की ही चर्चा हुआ करती थी, परंतु अब भारत के वैभव और उसके व्यापारिक ऐश्वर्य को चर्चा कम हुआ करतो है । वास्तव में भारत के निवासियों पर जैसी आर्थिक आपत्ति इस समय पड़ी है, जिस प्रकार उसका रक्त इस समय चूसा गया है, उसका नमूना उसके इतिहास के समस्त पन्ने उलटने पर कहीं न मिलेगा। "अनुमान किया जाता है कि भारत को रेलों, नहरों और अन्य प्रजा-हितैषी उद्योग-धंधों में ब्रिटेन की ५० करोड़ पौंड पूँजी लगो है। भारत को ५ प्रतिशत के हिसाब से उसका ब्याज ढाई करोड़ पौंड हर साल का देना पड़ता है। यह ब्याज विलायत के बांड के खरीदारों को दिया जाता है, और इतनो बड़ो रकम से भारत का कोई उपकार नहीं होता। इसके साथ हो फौजी अफसरों और सरकारी कर्मचारियों को पेंशन और दूसरे खर्च जोड़ दोजिए । इसे मिलाकर ३ करोड़ पौंड हर साल इंगलैंड चले जाते हैं। भारत में ८० प्रतिशत टैक्स जमीन से वसूल किए जाते हैं ! गवर्नमेंट जो टैक्स किसानों से वसूल करती है, वह उनको उपज का ५० से लेकर ६५ प्रतिशत तक होता है !! इसके अतिरिक्त किसानों को और भी बहुत-से स्था- नीय टैक्स देने पड़ते हैं । इस प्रकार बेचारे किसानों को ७५ प्रतिशत फसल केवल टैक्स अदा करने में चली जाती है !