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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२२३

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पंद्रहवां अध्याय २०५ व्यक्ति की हैसियत से इस आंदोलन का समर्थन करता है। वाइसराय, जिसके हाथ में आज भारत के शासन की बागडोर है, मजदूर-दल का नहीं है, वह लिबरल-दल का भी नहीं, अनुदार-दल का है, और ऐसे अवसर पर, जब कि मुसलमान, सिक्ख, हिंदू, अछूत, भारतीय ईसाई और ब्रिटिश व्यापारिक प्रतिनिधि गोल मेज के आस-पास बैठकर अपनी मांगें पेश करने और विचार-परिवर्तन करने में निमग्न थे, मि० चचिल ने एक ऐसा भाषण दिया है, जो शुरू से अंत तक शैतानी से भरा हुआ है, जिसमें कोई योजना नहीं है, और केवल अत्याचारी विजे- ताओं का विजितों पर वह अत्याचार चित्रित किया गया है, जो वर्तमान राजनीति में कहीं ढूंढ़े नहीं मिलता। "कांग्रेस को और उन लोगों को, जो गोल-सभा की अस- फलता के लिये ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं, ओर गत चार- पाँच सप्ताह से कान्फ्रेंस की सफलता के कारण जिनका विद्रोह कम हो चला है, मि० चर्चिल ने फिर से वह अवसर प्रदान किया है कि वह ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध भारत के जन-बल को भड़- काने लगें । हम चर्चिल को अकेला छोड़कर कहते हैं कि हमने भारतीयों का इतना विश्वास किया है कि मि० चचिल के इस भाषण का उन पर कोई असर नहीं हो सकता; परंतु यदि वे हमारा उपहास करने के लिये तैयार हैं, तो हम यही कहेंगे कि वे चर्चिल के भाषण की पुनरावृत्ति न करें।" दूसरी जनवरी को फेडरल स्टकचर (संयुक्त-शासन-निर्माण)