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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/३६

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२६ गोल-सभा थी। १९२० तक कांग्रेस की यहो नीति रही। परंतु नागपुर-कांग्रेस में महात्मा गांधी ने साफ कह दिया कि ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर यदि संभव हो, और ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर यदि जरूरत हो।" ६ वर्ष तक यह युग भी कायम रहा। सन् ३० की कांग्रेस-कलकत्ते की कांग्रेस में महात्मा गांधी ने प्रतिज्ञा की थी कि यदि ३१ दिसंबर, सन् २६ को रात के १२ बजे तक सरकार औपनिवेशिक स्वराज्य भारत का न देगो, तो मैं पूर्ण स्वाधीनता के पक्ष में हो जाऊँगा। इस प्रतिज्ञा के अनुसार उन्होंने रात को १२ बजकर ३ मिनट पर पूर्ण स्वाधीनता की घोषणा की। इस कांग्रेस के सभापति का पद ग्रहण करने के लिये महात्मा गांधी से बहुत विनय की गई थी; परंतु उन्होंने यह जवाब दिया कि देश में जो नई उत्तेजना फैली है, उसे रोककर, अपनी ठीक नीति के आधार पर क़ब्ज़े में कर रखना मेरे लिये अशक्य प्रतीत होता है। इसलिये मैं चाहता हूँ कि उस प्रवाह को अपने ऊपर से गुजर जाने दूं । उन्होंने पं० जवाहरलाल नेहरू को सभापति-पद के लिये पेश किया, और वह चुन लिए गए। देश में इस समय गर्म विचार भरे हुए थे। यद्यपि लोग देश के लिये साधारण कुर्बानी भी करने को तैयार नहीं दीखते थे, परंतु वे गर्म-से-गर्म प्रोग्राम को अमल में आने का तमाशा देखना अवश्य चाहते थे। नवयुवक लोग, जिनमें पंजाब, बंगाल और दक्षिण-भारत का खास भाग था, बड़ी उतावली से अपने गर्म विचारों को अमल में लाने को इच्छा करते दीख पड़ते थे।