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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/७४

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गोल-सभा मैं इतने साल से हिचकिचाता रहा हूँ, उसे उठाऊँ, इस उम्मीद से मैं आपको यह पत्र लिखने जा रहा हूँ कि अगर समझौते का कोई रास्ता निकल सके, तो उसके लिये कोशिश कर देखू । अहिंसा में मेरा विश्वास तो जाहिर ही है। जान-बूझकर मैं किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं कर सकता, तो फिर मनुष्य- हिंसा की तो बात ही क्या है ? फिर भले ही उन मनुष्यों ने मेरा या जिन्हें मैं अपना समझता हूँ, उनका बड़े-से-बड़ा अहित ही क्यों न किया हो । इसलिये यद्यपि अँगरेजी सल्तनत को मैं एक बला मानता हूँ, तो भी मैं यह कभी नहीं चाहता कि एक भी अगरेज को या भारत में उपाजित उसके एक भो उचित हित को किसी तरह का नुकसान पहुँचे । ग़लतफहमी से बचने के लिये मैं अपनी बात जरा ओर साफ़ किए देता हूँ। यह सच है कि मैं भारत में अंगरेजो राज्य को एक बला मानता हूँ, लेकिन इसके कारण यह तो कभी सोचा ही नहीं कि सब-के-सब अँगरेज़ दुनिया के दूसरे लोगों के मुकाबले ज्यादा दुष्ट हैं । बहुतेरे अँगरेजों के साथ गहरी दोस्ती रखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है । यही नहीं, बल्कि अँगरेजी राज्य ने हिंदोस्तान को जो नुकसान पहुँचाया है, उसके बारे में बहुतेरी हकीकतें तो मुझे उन अनेक अँगरेजों को लिखी हुई किताबों से ही मालूम हुई हैं, जिन्होंने सत्य को उसके सच्चे रूप में, निडरता-पूर्वक, प्रकट किया है । और, इसके लिये मैं उन सबका हृदय से आभारी हूँ।