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पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/४३

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लोक-धर्म


जिसके सेवन से धर्म-मार्ग में कष्ट और श्रांति न जान पड़े, आनंद और उत्साह के साथ लोग आपसे आप इसकी ओर प्रवृत्त हो, धर-पकड़ और जबरदस्ती से नहीं। जिस धर्म-मार्ग में कोरे उपदेशों से कष्ट ही कष्ट दिखाई पड़ता है, वह चरित्र-सौंदर्य के साक्षात्कार आनंदमय हो जाता है। मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति और निवृत्ति की दिशा को लिए हुए धर्म की जो लीक निकलती है, लोगों के चलते चलते चौड़ी होकर वही सीधा राजमार्ग हो सकती है; जिसके संबंध में गोस्वामीजी कहते हैं——

"गुरु क्ह्यो राम-भजन नीको मोहि लागत राजडगरो सो।"