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पृष्ठ:चंदायन.djvu/४१

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२८ होता है । एक भी ऐसी नागरी प्रति उपलब्ध नहीं है जो सवरहवीं शती पूर्वको हो और किसी ग्रन्थनी प्राचीनतम प्रति रहीं जा सरे। चन्दायनरे सम्बन्धमे तो हमें यह कहनेमे तनिक भी सकोच नहीं है कि वह मूल्त नस्स लिपिम लिसा गया रहा होगा | उसकी सोलहवीं शती वाली प्रतियाँ इसी लिपिमें हैं । उसकी एक मात्र हिन्दी प्रतिके मूल्मे कोई अरवी पारसी लिपिकी प्रति थी, यह तो उसके प्रथम वाक्य-नुस्खः चन्दायन गुत्कार मौलाना दाऊद डलमई से ही सिद्ध है । सर्वोपरि हमारे सम्मुख नस्स लिपि लिखित जो प्रतियाँ हैं, उनमेंसे किसी भी प्रतिमें ऐसी विकृति नहीं मिलती जिससे उसकी किसी पूर्वज प्रतिके नागरी लिपिमें लिखे होनेकी दूरस्थ क्ल्पना भी की जा सके। पाठोद्धार और पाठ-निर्धारण किसी भी भापाको अरबी-पारसी लिपिमें लिखना उतना कठिन नहीं है, जितना कि बिना अभ्यासके उस लिपिमें लिखी भाषाका पढना । इस लिपिमें व्यजन मुख्यत नुक्तों (विन्दुओं) पर आधृत हैं । अत जबतक कोई वस्तु सावधानीसे न लिखी गयी हो, उसे ठीक्से और शुद्ध पढना यदि सर्वथा असम्भव नहीं तो दुरुह अवश्य है। इसी प्रकार स्वर व्यक्त करने लिए इस लिपिमें केवल तीन अक्षर अलिफ, ये और घाव है। अलिफको अ और आ दोनों पढ़ा जा सकता है। कहीं कहीं आको शुद्ध पढने निमित्त तशदीदका चिह्न दे दिया करते हैं। येके दो रूप हैं जो छोटी ये और बड़ी ये बहकर पुकारे जाते हैं। साधारणत छोटी ये इ और ईके लिए और सडी ये ए और ऐरे लिए काम आता है । अन्तर व्यक्त करनेके लिए जेर और जररके चिह्न लगा देते हैं। इसी प्रकार वावका प्रयोग उ,ऊ, और ओरे लिए होता है। उयुक्त व्यजनमें वावका प्रयोग न कर ऊपर केवल पेशका चिह लगा देते हैं। किन्तु यह सब सिद्धान्तरी ही पाते हैं। व्यवहारमें लिखते समय जेर, जबर, पेदा प्राय लेग नहीं लगाते । अभास आधारपर ही अन्दाजसे पाठ-स्वरूप समझ लिया जाता है। चन्दायनकी जो प्रतियाँ हमें उपलब्ध हैं, वे सभी नस्स (अरवी हेसन शैली या एक रूप) में हैं । इस लिपि लेसक लिपि-सौन्दर्यपर विशेष बल दिया करते थे। इस कारण ये नहरों को अपने सागर र रसकर सौंदपंकी शिसे आगे पीछे, ऊपर नीचे जहाँ चाहे ती रप दिया करते थे । बिन्दुका लोप भी कोई दोष नहीं माना जाता था । इस प्रकार नुक्तों के अभाव अथवा मनमानाने कारण पाठोद्धारमें जो कठिनाई हो सकती है वह तो है ही, इसमें अनेक अक्षर ऐसे जिनके उच्चारण कई हैं। त और टवे उच्चारणपे लिए आज दो अपर ते और टे हैं। पर उस समय इसका काम केवल एक अशरसे ही लेते थे। इसी प्रकार क और ग भी एक ही अक्षर काफसे लिखा जाता था। इस ढगके कुछ अन्य अक्षर भी हैं। मात्रा-बोधक चिझोंका प्रयोग इन प्रतियों में नहीं बराबर है। ये ये दोनों रूपोंका प्रयोग बिना किसी भेदके इ और ए के लिए किया गया है।