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पृष्ठ:चंदायन.djvu/४४

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मलग्रन्थ काशी बम्बई मनेर शरीफ गैरेण्ड्स पजाब पजाब पर इस मवारकी प्रति परम्परा और पाट सम्बन्धको व्यक्त करनेवाली यह सामग्री अत्यल्प है। उनके आधारपर क्वल १२ कडवकों का ही कोई सशुद्ध पाठ उपस्थित रिया जा सकता है। यह अन्य असशुद सामग्रोर बीच बेमेल जान पडेगा । अत इनरे लिए भी रीलैण्ड्सवाले पाठ मूल रूपमें और शेप पाठ विकल्य रूपमें दिये गये है। कहा कहीं, जहाँ रीलैण्ड्स प्रतिका पाठ स्पट रूपसे विकृत लगा, वहा विवेकरे सहारे दूसरी प्रतिका पाठ मूल्में ग्रहण कर लिया गया है। पर ऐसे स्थल कम ही हैं। भापा रामचन्द्र शुक्रने जायसी प्रन्थावलीकी भूमिकाम लिया है -ध्यान देनेकी यात है कि ये सब प्रेम-कहानियाँ पूरवी हिन्दी अर्थात् अवधी भाषामें एक नियत क्रमके साथ केरल चौपाई-दोहेमें लिखी गयी है। अभीतक जितने भी हिन्दी भूपी काव्योरे अध्ययन प्रस्तुत किये गये है, प्राय उन सबमें यह तथ्य ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया है । पलस्वरूप चन्दायनको भापावे सम्बन्ध भी यही समझा जाता है कि उसकी भाषा अवधी हागी । श्याममनोहर पाण्डेयने मध्ययुगीन प्रेमाख्यानमें अत्यन्त विश्वासके साथ लिखा है-डलमऊ क्षेत्रमें अनवी बोली जाती थी। अतः जनतामें अपने सन्देश प्रसारित करनेके लिए मुल्ला दाउदने अवधीका ही चयन करना उपयुक्त समझा होगा। सूफी कवि जिस क्षेत्रम रहे हैं, वहाँकी भापामें काव्य लिखते रहे है। पंजाबके सूफी कवियोंने पजावी में 'ससिपुन्नो' हीर राँझा' थादि कथाओको सूफियाने ढगसे पंजावी में लिखा । इसी प्रकार दौलत काजी, अमाउल आदि कवियोने जा पगालके रहनेवाले थे, युग ममें लिखा । अतः इलमकका कवि अवधी क्षेत्रमें रहकर अवधीमें लिखता है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये। ___ पर हम आश्चय यह देखकर होता है कि हमारे विद्वान इस यातकी ठो तपूर्ण कल्पना कर सकते है कि दाऊद टलमऊक थे भोर डलमऊ अवध है, अवध की भाषा अवधी कहलायेगी, अत दाऊदकी भाषा अवधी ही होगी पर इस वास्तावक १ चतुर्थ सतरण, स० २०१७, पृ ४। २ मध्यपुगीन प्रेमारयानक काव्य, प्रयाग, १० २५९