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पृष्ठ:चंदायन.djvu/४७

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३४ जो ससि पड़े सो जमपंथी जायी (जायेगा) परतह माँ मॅगर तिहं सायी (सायेंगे) औ जस जान पहसु संपारी (कहना) भविष्यत् कात्यो समय त्रियाका रूप उक्ति-व्यक्ति प्रकरणमे एब्ध अथवा 'अच' मिलता है। यथा-पदव, देखव, करव, घरव । चन्दायनमे उन रूपका प्रयोग हुआ है। यथा-- जो तुम पर यह बनिज चलाउन मेना कह में गोहन आउन कउन बाट हम हो पुन मैं पठउर भविष्यत् कालको विधि नियाका रूप उक्ति-व्यक्ति-प्रकरणने करेसु, पढ़ेसु है।चन्दायनमे इस क्रियाका रूप है-- पाय राग कै सिरजन माँ कॅथ जायि सुनायह होय देव उठान पीर पूजा मिस घर आयहु सिरजन भल दिन लायहु पाटन देस तूं होर न जायसि । उपर्युक्त उदाहरणासे स्पष्ट है कि चन्दायनकी भाषा उक्ति-व्यक्ति-प्रकरणी भापासे सर्वथा भिन्न है। यदि उचिच्यक्ति-प्रकरणकी भापा अवधी हैं तो चन्दायन को भाषा अवधी नहीं है। चन्दायनकी भाषा प्रसगमे श्याम मनोहर पाण्डेयने एक अन्य काव्य रोड़ा कृत राउल वेलफी चर्चा की है। यह रमण्डित काव्य एक शिलापल्पर अक्ति और प्रिंस आव वेल्स म्यूजिपम, बम्बईम मुरक्षित है। इसका एक पाट माताप्रसाद गुप्तने हिन्दी अनुशीलनमें प्रकाशित किया है और उमे ग्यारहवीं शताब्दीकी रचना बताया हे और उसकी भाषाको दक्षिण कोसली कहा है। श्याममनोहर पाण्डेयने इस आधारपर यह मत प्रकट किया है कि 'अब हम सरलतापूर्वक कह सकते हैं कि दक्षिण कोसलीमें, जो अवधीका एक रूप है, ग्यारहवीं शताब्दीमें काव्य. रचना हो रही थी। हमें सेदके साथ कहना पड़ता है कि दोनों ही विद्वानों ये मत नितान्त निराधार है। राउल वेलको ग्यारहवी शताब्दीकी रचना माननेका पोई आधार नहीं है। वह तेरहवीं शताब्दीरे आसपासी रचना है। उसकी भाषा दक्षिण कोसली है, इसके लिए माताप्रसाद गुप्तने कोई प्रमाण उपस्थित नहीं किये है। इस कापमें विभिन्न प्रदेशसी स्त्रियाका रूप वर्णन है और जिस प्रदेदावी रखीका जिस अयमे वर्णन है, उसमें १ हिन्दी अनुशीलन, वर्ष १३, १२, १९६०, पृ० २३ । २. मयुगौन प्रेमाण्यान, १० २६०३