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पृष्ठ:चंदायन.djvu/९४

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(होपर प्रति) मडे मालिप उल्-उमरा मल्कि मुलारिक इन मालिक ययाँ ___ मरतअसतूद बूद (मालिक पयों के पुन मारिक मुयारिस्की प्रशसा) मलिक मुशारक दुनि क सिंगारू । दान जूझ वड वीर अपारू] ॥१ खड़ग साइ हि परहिं पहारा । वासुकि कॉपै नाहिं उबारा ॥२ कान्ध तोरइ रकत पहावइ । धर सिर वन तिन्ह माँझ परावइ ॥३ विधना मारि देस मह आनी । भागहि राई छाडि निसि रानी ॥४ जिन्ह सर दइ मुदगर कर घाऊ । फेरि नहिं धरै सीध कै पाऊ ॥५ जिन्ह जग परा भगानॉ, छाड देस नृप भाग ॥६ फीर देन्ह सरव दण्ड, गये ते चयाँ लाग ॥७ टिप्पणी--(१) मालिक मुवारिक-इनके सम्बधी जानकारी अन्यन उपलब्ध नहीं है। इस प्रन्थ से पेवल इतना ही ज्ञात होता है कि ये मालिक बाँके पुन और डल्मउ मीर ( न्यायाधीश) थे । सम्भवत इन्हें मालिक उ उमराकी उपाधि प्राप्त थी। बहुत सम्भव है कि ये चन्दायन रचयिता मौलाना दाऊदये पिता हों। दलमऊ रिटेके खम्डहरमें एक कद्र है जिसे लोग शेख मुगरिपरी रन पताते है । उनले सम्बन्ध कहा जाता है कि ये सैयद सागर मसऊद गारे साथ आये थे। नाम साम्य कारण मिनौने उनकी ओर मेरा प्यान आकृष्ट किया है। किन्तु वे इन मलिक मुवरिस्से सर्वथा भिन्न थे। (घीकानेर प्रतिके प्रकाशित पाटके आधारपर) । परिस सात से होइ इक्यासी' । तिहि जाह वि सरसेउ भासी ॥१ साहि फिरोज दिल्ली सुलतान । जौनासाहि वजीरु बसानू ॥२ डलमउ नगर यसै नवरंगा । ऊपर कोट तले वहि गंगा ॥३ घरमी लोग चसहिं भगवन्ता । गुनगाहक नागर जसवन्ता ॥४ मलिक चयाँ पूत उधरन घीरू । मलिक मुबारिक तहाँ के मीरू ॥५