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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१०१

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जरूरी काम के लिए उसके घर पर जा रही हूँ। (आसमान की तरफ देखकर) ओफ, बहुत बिलम्ब हुआ, खैर, अब बिदा होती हूँ, पुनः मिलने पर सब हाल कहूँगी।

कमलिनी वहाँ से रवाना हुई और थोड़ी ही देर में उस बाग के फाटक पर जा पहुँची जिसमें मनोरमा का मकान था। फाटक के साथ लोहे की एक जंजीर लगी हुई थी जिसे हिलाने से दरबान ने एक छोटे-से सुराख में से बाहर की तरफ देखा जो इसी काम के लिए बना हुआ था। केवल एक औरत को दरवाजे पर मौजूद पाकर दरबान ने फाटक खोल दिया और जब कमलिनी अन्दर चली आई तो फाटक उसी तरह बन्द कर दिया और तब कमलिनी से पूछा, "तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो?"

कमलिनी––मुझे मनोरमा जी ने पत्र देकर अपनी सखी नागर के पास भेजा है, तुम मुझे नागर के पास बहुत जल्द ले चलो।

दरबान––वह तो यहाँ नहीं हैं, किसी दूसरी जगह गई हैं।

कमलिनी––कब आवेंगी?

दरबान––सो मैं ठीक नहीं कह सकता।

कमलिनी––क्या तुम यह भी नहीं कह सकते कि वे आज या कल तक लौट आवेंगी या नहीं?

दरबान––हाँ, यह तो मैं कह सकता हूँ कि चार-पाँच दिन तक वे न आवेंगी; इसके बाद चाहे जब आवें।

कमलिनी––अफसोस, अब बेचारी मनोरमा नहीं बच सकती।

दरबान––(चौंककर) क्यों-क्यों? उन पर क्या आफत आई?

कमलिनी––यह एक गुप्त बात है जो मैं तुमसे नहीं कह सकती, हाँ, इतना कहने में कोई हर्ज नहीं कि यदि तीन दिन के अन्दर उन्हें बचाने का उद्योग न किया जायगा तो चौथे दिन कुछ नहीं हो सकता, वे अवश्य मार डाली जायेंगी।

दरबान––अफसोस, यदि आप एक दिन तक यहाँ अटकना मंजूर करें तो मैं नागरजी के पास जाकर उन्हें बुला लाऊँ। आपको यहाँ किसी तरह की तकलीफ न होगी!

कमलिनी––(कुछ सोचकर) मुझे एक जरूरी काम है, इसलिए अटक तो नहीं सकती, परन्तु कल शाम तक अपना काम करके लौट आ सकती है।

दरबान––यदि आप ऐसा कर तो भी काम चल सकता है, परन्तु आप अटक न जायँ। यदि आपका काम ऐसा हो जिसे हम लोग कर सकते हों तो आप कहें, उसका बन्दोबस्त कर दिया जायगा।

कालिनी नहीं, बिना मेरे गये वह काम नहीं हो सकता। मगर कोई चिन्ता नहीं, मैं कल शाम तक अवश्य आ जाऊँगी।

दरबान––जैसी मर्जी, आपकी मेहरबानी से यदि हमारे मालिक की जान बच जायगी तो हम लोग जन्म भर के लिए गुलाम रहेंगे।

कमलिनी––मैं अवश्य आऊँगी और उनके लिए हर तरह का उद्योग करूँगी, तुम जाती समय इसका बन्दोबस्त कर जाना कि यदि तुम्हारे लौट आने के पहले ही मैं