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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१२३

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कि उस कम्बख्त कमलिनी के साथ मैंने क्या किया, जिसने मुझे धोखे में डाला था। इस समय वह मेरे कब्जे में है, क्योंकि कल वह मेरे घर में जरूर आकर टिकेगी! अहा, अब मैं समझ गई कि रात वाले अद्भुत मामले की जड़ भी वही है। जरूर ही इस मुर्दे शेर को रास्ते में तूने ही बैठाया होगा।

भूतनाथ––(आँखों में आँसू भरकर) अबकी दफे मुझे माफ करो, जो कुछ हुक्म दो, मैं करने को तैयार हूँ।

नागर––मैं अभी कह चुकी हूँ कि तुझे मारूँगी नहीं, फिर इतना क्यों डरता है?

भूतनाथ––नहीं-नहीं, मैं वैसी जिन्दगी नहीं चाहता, जैसी तुम देती हो, हाँ यदि इस बात का वादा करो कि वे कागजात किसी दूसरे को न दोगी तो मैं वे सब काम करने को तैयार हैं, जिन्हें पहले इनकार करता था।

नागर––मैं ऐसा कर सकती हूँ, क्योंकि आखिर तुझे जिन्दा छोड़ूँगी ही, और यदि मेरे काम से तू जी न चुरावेगा तो मैं तेरे कागजात भी बड़ी हिफाजत से रखूँगी। हाँ, खूब याद आया––उस चिट्ठी को तो जरा पढ़ना चाहिए जो उस कम्बख्त कमलिनी ने यह कहकर दी थी कि मुलाकात होने पर मनोरमा को दे देना।

यह सोचते ही नागर ने बटुए में से वह चिट्ठी निकाली और पढ़ने लगी। यह लिखा हुआ था––

"जिस काम के लिए मैं आई थी, ईश्वर की कृपा से वह काम बखूबी हो गया। वे कागजात इसके पास हैं, ले लेना। दुनिया में यह बात मशहूर है कि उस आदमी का जहान से उठ जाना ही अच्छा है, जिससे भलों को कष्ट पहुँचे। मैं तुमसे मिलने के लिए यहाँ बैठी हूँ।"

नागर––देखो नालायक ने चिट्ठी भी लिखी तो ऐसे ढंग से कि यदि मैं चोरी से पढ़ भी तो किसी तरह का शक न हो और इसका पता भी न लगे कि यह भूतनाथ के नाम लिखें गई है या मनोरमा के, स्त्रीलिंग और पुलिंग को भी बचा ले गई है। उसने यही सोच के चिट्ठी मुझे दी होगी कि जब यह भूतनाथ के कब्जे में आ जायगी, और वह इसकी तलाशी लेगा तो यह चिट्ठी उसके हाथ लग जायगी, और जब वह पढ़ेगा तो नागर को अवश्य मार डालेगा, और फिर तुरत आकर मुझसे मिलेगा, जिसमें वह किशोरी को छुड़ा ले। अच्छा कम्बख्त, देख, मैं तेरे साथ क्या सलूक करती हूँ।

भूतनाथ––अच्छा, इतना वादा तो मैं कर ही चुका हूँ कि हर तरह से तुम्हारी ताबेदारी करूँगा और जो कुछ तुम कहोगी, बेउज्र बजा लाऊँगा, अब इस समय मैं तुम्हें एक भेद की बात बताता हूँ, जिसे जानकर तुम बहुत प्रसन्न होओगी।

नागर––कहो, क्या कहते हो? शायद तुम्हारी नेकचलनी का सबूत यहीं मिल जाय।

भूतनाथ––मेरे हाथ तो बँधे हैं, खैर, तुम ही आओ मेरी कमर से खंजर निकालो। उसके साथ एक पुर्जा बँधा है, खोलकर पढ़ो और देखो, क्या लिखा है?

नागर भूतनाथ के पास गई और उसकी कमर से खंजर निकालना चाहा, मगर खंजर पर हाथ पड़ते ही उसके बदन में बिजली दौड़ गई और वह काँप कर जमीन पर