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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१४७

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खुले दरवाजे के ठीक दूसरी तरफ था) लेट रहा और उन दोनों की बातें सुनने लगा। जो सुना, उसे ठीक-ठीक बयान करता हूँ––

माँ––जब तुम्हें मेरा विश्वास नहीं तो किस मुँह से कहते हो कि मैंने तेरे लिए यह किया और वह किया?

बाप––बेशक, मैंने तेरे लिए अपनी जान खतरे में डाली और जन्म भर के लिए अपने नाम पर धब्बा लगाया, और अब तू चाहती है कि मैं न मरने लायक रहूँ और न जीते रहकर किसी को मुँह दिखा सकूँ।

माँ––अपने मुँह से तुम जो भी चाहे कहो, मगर मैं ऐसा नहीं चाहती जो तुम कहते हो। क्या मैं वह किताब खा जाऊँगी या किसी दूसरे को दे दूँगी? जाओ, अपनी किताब ले जाओ और अपनी चहेती बेगम को नजर कर दो!

बाप––मेरी वह जोरू जिसे तुम ताना देकर बेगम कहती हो तुम्हारे ऐसी जिद्दी नहीं। उसने मुझे राजा वीरेन्द्रसिंह के यहाँ चोरी करने के लिए नहीं कहा और न वह तिलिस्म का तमाशा ही देखना चाहती है।

माँ––उसको इतना दिमाग नहीं, कंगाल की लड़की का हौसला ही कितना!

बाप––हाँ, बेशक उसका इतना बड़ा हौसला नहीं कि मेरी जान की ग्राहक बन बैठे।

इसके बाद थोड़ी-सी बातें बहुत ही धीरे-धीरे हुई जिन्हें मैं अच्छी तरह सुन न सका। अन्त में मेरा बाप इतना कहकर चुप हो रहा––"खैर, फिर जो कुछ भाग्य में बदा है वह भोगूँगा। लो यह खूनी किताब तुम्हारे हवाले करता हूँ, पाँच रोज में लौट के आऊँगा, तो तिलिस्म का तमाशा दिखा दूँगा और फिर यह किताब राजा वीरेन्द्रसिंह के यहाँ किसी ढंग से पहुँचा दूँगा।"

मैं यह सोचकर कि अब बाप बाहर निकलना ही चाहता है, उठ खड़ा हुआ और चुपचाप नीचे उतर अपने कमरे में चला आया। मगर मेरे दिल की अजब हालत थी। मैं खूब जानता था कि वह मेरी माँ नहीं है और अब तो मालूम हो गया कि उस कम्बख्त के फेर में पड़कर मेरा बाप अपने ऊपर कोई आफत लाना चाहता है, इसलिए मैं सोचने लगा कि किसी तरह अपने बाप को इसके फरेब से बचाना और अपनी असली माँ का पता लगाना चाहिए।

दो घण्टे बीत गये, मगर मेरा बाप नीचे न उतरा। मेरी चिन्ता और भी बढ़ गई। मैं सोचने लगा कि शायद फिर कुछ खटपट होने लगी। आखिर मुझसे रहा न गया, मैंने अपने कमरे से बाहर निकल के बाप को आवाज दी! आवाज सुनते ही वे मेरे पास चले आये और धीरे-से बोले, "क्यों बेटा, क्या है?"

मैं––आपसे एक बात कहना चाहता हूँ, मगर कुछ छिपाकर।

बाप––कहो, यहाँ तो कोई भी सुनने वाला नहीं है, ऐसा ही डर है तो ऊपर चले चलो।

मैं––(धीरे से) नहीं, मैं उस दुष्टा के सामने कुछ भी कहना नहीं चाहता जिसे आप मेरी माँ समझते हैं।