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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१५३

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तेजसिंह––हाँ-हाँ, कहो फिर क्या हुआ! तुम्हारा हाल बड़ा ही दिलचस्प है, कुल बातें हमारे ही सम्बन्ध की हैं।

नानक––ठीक है, परन्तु अफसोस, इस समय मैं जो कुछ आपसे कह रहा हूँ उस से मेरे बाप का कसूर और...

तेजसिंह––मैं समझ गया जो कुछ तुम कहना चाहते हो, मगर मैं सच्चे दिल से कहता हूँ कि यद्यपि तुम्हारे बाप ने भारी जुर्म किया है और उसके विषय में हमारी तरफ से विज्ञापन दिया गया है कि जो कोई रिक्तगन्थ के चोर को गिरफ्तार करेगा उसे मुँहमाँगा इनाम दिया जाएगा, तथापि तुम्हारे इस किस्से को सुनकर, जिसे तुम सच्चाई के साथ कह रहे हो, मैं वादा करता हूँ कि उसका कसूर माफ कर दिया जायगा और तुम जो कुछ नेकी हमारे साथ किया चाहते हो या करोगे उसके लिए धन्यवाद के साथ पूरा-पूरा इनाम दिया जायगा। मैं समझता हूँ कि तुम्हें अपना किस्सा अभी बहुत कुछ कहना है और इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि जो कुछ तुम कहोगे मेरे मतलब की बात होगी, परन्तु इस बात का जवाब मैं सबसे पहले सुना चाहता हूँ कि वह रिक्तगन्थ तुम्हारे कब्जे में है या नहीं? अथवा हम लोग उसके पाने की आशा कर सकते हैं या तुम सचाई नहीं?

इसके पहले कि तेजसिंह की आखिरी बात का कुछ जवाब नानक दे, बाहर से यह आवाज आई––"यद्यपि रिक्तगन्थ नानक के कब्जे में अब नहीं है तथापि तुम उसे उस अवस्था में पा सकते हो जब अपने को उसके पाने योग्य साबित करो!" इसके बाद खिलखिलाकर हँसने की आवाज आई।

इस आवाज ने दोनों ही को परेशान कर दिया, दोनों ही को दुश्मन का शक हुआ। नानक ने सोचा कि शायद मायारानी का कोई ऐयार आ गया और उसने छिप कर मेरा किस्सा सुन लिया, अब यहाँ से निकलना या जान बचाकर भागना बहुत मुश्किल है, तेजसिंह को भी यह निश्चय हो गया कि नानक द्वारा जो कुछ भलाई की आशा हुई थी अब निराशा के साथ बदल गई।

दोनों ऐयार उसे ढूँढ़ने के लिए उठे जिसकी आवाज ने यकायक उन दोनों को चौंका और होशियार कर दिया था। दो कदम भी आगे न बढ़े थे कि फिर आवाज आई, "क्यों कष्ट करते हो, मैं स्वयं तुम्हारे पास आता हूँ।" साथ ही इसके एक आदमी इन दोनों की तरफ आता हुआ दिखाई पड़ा। जब वह पास पहुँचा तो बोला, "ऐ तेजसिंह और नानक, तुम दोनों मुझे अच्छी तरह देख और पहचान लो, मैं तुमसे कई दफे मिलूँगा, देखो भूलना मत।"

तेजसिंह और नानक ने उस आदमी को अच्छी तरह देखा। उसका कद नाटा और रंग साँवला था। घनी और स्याह दाढ़ी और मूँछों ने उसका आधा चेहरा छिपा रक्खा था। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी मगर बहुत ही सुर्ख और चमकीली थीं, हाथ-पैर से मजबूत और फुर्तीला जान पड़ता था। माथे पर सफेद चार अंगुल जगह घेरे हुए रामानन्दी तिलक था जिस पर देखने वाले की निगाह सबसे पहले पड़ सकती थी, परन्तु ऐसी अवस्था होने पर भी उसका चेहरा नमकीन और खूबसूरत था तथा देखने वाले