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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१५८

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की तरफ कान झुकाए जमीन की तरफ देख रहा था। चण्डूल कान में कुछ कह कर दो कदम पीछे हट गया मगर हरनामसिंह ज्यों-का-त्यों झुका हुआ खड़ा ही रह गया। यदि उस समय उसे कोई नया आदमी देखता तो यही समझता कि यह पत्थर का पुतला है। मायारानी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ, कई सायत बीत जाने पर भी जब हरनामसिंह वहाँ से न हिला तो उसने पुकारा, "हरनाम!" उस समय वह चौंका और चारों तरफ देखने लगा, जब चण्डूल पर निगाह पड़ी तो मुँह फेर लिया और बिहारीसिंह के पास जा सिर पर हाथ रख कर बैठ गया।

मायारानी––हरनाम, क्या तू भी बिहारी का साथी हो गया? वह बात मुझसे न कहेगा जो अभी तूने सुनी है?

हरनामसिंह––मैं इसी वास्ते यहाँ आ बैठा हूँ कि आखिर तुम रंज होकर मेरा सिर काट लेने का हुक्म दोगी ही क्योंकि तुम्हारा मिजाज बड़ा क्रोधी है। मगर, लाचार हूँ, मैं वह बात कदापि नहीं कह सकता।

मायारानी––मालूम होता है कि यह आदमी कोई जादूगर है। अस्तु, मैं हुक्म देती हूँ कि यह फौरन गिरफ्तार किया जाय!

चण्डूल––गिरफ्तार होने के लिए तो मैं आया ही हूँ, कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है? लीजिए स्वयं मैं आपके पास आता हूँ, हथकड़ी-बेड़ी कहाँ है लाइए!

इतना कह कर चण्डूल तेजी के साथ मायारानी के पास गया और जब तक वह अपने को सम्हाले, झुक कर उसके कान में न मालूम क्या कह दिया कि उसकी अवस्था बिल्कुल ही बदल गई। बिहारीसिंह और हरनामसिंह तो बात सुनने के बाद इस लायक भी रहे थे कि किसी की बात सुनें और उसका जवाब दें। मगर, मायारानी इस लायक भी न रही। उसके चेहरे पर मुर्दनी छा गई तथा वह घूम कर जमीन पर गिर पड़ी और बेहोश हो गई। बिहारीसिंह और हरनामसिंह को छोड़ कर बाकी जितने आदमी उसके साथ आये थे सभी में खलबली मच गई और सभी को इस बात का डर बैठ गया कि चण्डूल उनके कान में भी कोई ऐसी बात न कह दे जिससे मायारानी की सी अवस्था हो जाय।

घण्टा भर बीत गया पर मायारानी होश में न आई। चण्डूल, तेजसिंह के पास गया और उनके कान में भी कोई बात कही, जिसके जवाब में तेजसिंह ने केवल इतना!" ही कहा, "मैं तैयार हूँ!"

तेजसिंह का हाथ पकड़े हुए चण्डूल उसी कोठरी में चला गया जिसमें से बाहर निकला था। अन्दर जाने के बाद दरवाजा बखूबी बन्द कर लिया। मायारानी के साथियों में से किसी की भी हिम्मत न पड़ी कि चण्डूल को या तेजसिंह को जाने से रोके। जिस समय चण्डूल यकायक कोठरी का दरवाजा खोल कर बाहर निकला था, उस समय मालूम होता था कि उस कोठरी के अन्दर और भी कई आदमी हैं। मगर, उस समय तेजसिंह ने वहाँ सिवाय अपने और चण्डूल के और किसी को भी न पाया। उधर माया- रानी जब होश में आई तो बिहारीसिंह, हरनामसिंह तथा अपने और साथियों को लेकर खास महल में चली गई। उसके दोनों ऐयार बिहारीसिंह और हरनामसिंह अपने मालिक